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कहानी ११: गेब्रियल मरियम के पास आता है

परमेश्वर ने गेब्रियल स्वर्गदूत को स्वर्ग के सिंहासन कमरे से अपने मंदिर के महा पवित्र जगह पर भेजा ताकि, वो जकरया को परमेश्वर के योजना की घोषणा कर सके।

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कहानी १२: मरियम और एलिजाबेथ

जब स्वर्गदूत गैब्रियल मरियम के पास आया था, तो वह इस्राएल के उत्तर में रह रही थी - गालील के समुद्र से कुछ ही मील की दूरी पर, नासरत नाम के शहर में। जब उसको परमेश्वर के आश्चर्यजनक कार्य का एहसास हुआ जो वह उसके अन्दर करने जा रहा था, वह अपने शहर से दूर चली गई।

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कहानी १४: यूसुफ़

यूसुफ को यह कितना अजीब लगा होगा। उसकी मंगनी मरियम से हुई थी। हालांकि उस समय के इस्राएल, में माता पिता अपने बच्चों की शादी तय करते थे, वे अक्सर अपनी पसंद के साथ अपने बच्चों को खुश करने की कोशिश करते थे! एक बार माता - पिता शादी पर सहमत हो जाते, वो कानूनी रूप से बाध्यकारी था।

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कहानी १६: मंदिर में मसीह

यूसुफ़ और मरियम कितना अचंबित हुए होंगे जब चरवाहों ने उन्हें स्वर्गदूतों और उन सभी के चारों ओर परमेश्वर की महिमा के प्रकाश की कहानियाँ बताई होंगी! जब मरियम प्रभु यीशु को दूध पिला और नेहला रही होगी, तो उसने इन भव्य आयोजनों के बारे में क्या सोचा होगा?

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कहानी २६: लड़ाई का शुरू होना

उसके बपतिस्मा के बाद, यीशु,पवित्र आत्मा के द्वारा जंगल में ले जाया गया की वह शैतान के द्वारा परखा जाए। इस बीच येरूशलेम के सलाहकार जो देश के सबसे सामर्थी धार्मिक अग्वे थे, उन्होंने याजकों को यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के पास सवाल करने के लिए भेजा।

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कहानी २९: यूहन्ना बपतिस्मा देने वाली घटना

यरूशलेम से जाने के बाद, यीशु और उसके चेले यहूदी पहाड़ी क्षेत्र से बाहर चले गए। यीशु ने वहाँ अपने चेलों के साथ समय बिताया और उन्हें बपतिस्मा दिया जो उनके पास आये। यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला लोगों को ऐनोन के क्षेत्र में बपतिस्मा दे रहा था।

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कहानी ३२: प्रभु की आत्मा

फिर वह नासरत आया जहाँ वह पला-बढ़ा था ताकी वहाँ के लोगों को लोगों को यह शुभ सन्देश बता सके की परमेश्वर क्या कर रहा है। क्या वे यह विश्वास करते की वह यहाँ है?

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कहानी ३३: मरकुस का परिचय

हम पहले से ही लूका की पुस्तक और मत्ती की पुस्तक के लेखकों के बारे में सीख चुके हैं। चलिए अपनी यादों को ताज़ा करते हैं, और फिर हम मरकुस की किताब के लेखक के बारे में जानेंगे। मत्ती, यीशु के शिष्य एक चुंगी लेने के द्वारा लिखा गया था।

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कहानी ४२: हाथ जो चंगा हुआ

येरुशलम में यहूदियों के साथ अपने महान टकराव के बाद, यीशु अपने घर वापस गलील चेलों के साथ गया। एक दिन, यीशु और उसके चेले ग्रामीण इलाकों के अनाज क्षेत्रों से जा रहे थे।

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कहानी ४४: बारह चेलों का चुना जाना

यीशु चिकित्सा का और भीड़ को प्रचार करने का भारी मात्रा में कार्य कर रहे थे। गलील और यहूदिया से जो यहूदी लोग यीशु सेवकाई में शुरू से उसके पास, साथ अन्यजाति भी जुड़ गए जो मीलों दूर शहरों में। उन्होंने उसके विषय में सुना था जो चंगाई देता है, और वे गलील से यीशु को स्पर्श करने के लिए दूर दूर से आए थे।

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कहानी ९३: एक अंधा आदमी

चेले यीशु के संग बैतसैदा चले आये। वहाँ कुछ लोग यीशु के पास एक अंधे को लाये और उससे प्रार्थना की कि वह उसे छू दे। उसने अंधे व्यक्ति का हाथ पकड़ा और उसे गाँव के बाहर ले गया।

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कहानी ९८: मिलापवाले तम्बू के पर्व पर यीशु येरूशलेम में: यीशु का आगमन 

येरूशलेम जाने के लिए जब यीशु और उसके चेलों ने गुप्त तरीके से रास्ता निकाला, तब यहूदी उसके आने कि इंतेजारी में थे। लोग आपस में यह बातें करते थे कि यदि वह एक अच्छा आदमी था या धोखेबाज़ जो लोगों को परमेश्वर से दूर ले जाना चाहता है।

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कहानी १५८: पिता और आत्मा

एक बार यीशु ने अपने चेलों के साथ प्रभु-भोज, वह उनके साथ आने वाले दिनों कि भेद कि बातों को बताने लगा। उसे उन्हें अपनी ही मृत्यु में तैयार करना था। जो वह अब कहने जा रहा था वह उसके चेलों लिए अलविदा था।

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कहानी १६०: आशा का सहायक 

यीशु ने अपने शिष्यों के लिए एक सहायक भेजने का वायदा किया। यीशु की आत्मा उनके ह्रदय में आकर उसके राज्य के कार्य को करने के लिए उनकी अगुवाई करेगा और सामर्थ देगा।

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कहानी १७९: आत्मा का उंडेला जाना 

यीशु अपने चेलों से यरूशलेम के एक गुप्त, बंद कमरे में बात कर रहे थे, और चेले पूरे ध्यान के साथ सुन रहे थे। अंत में, यीशु की योजनाए उनके जीवनों के बारे में उन्हें ज्ञात हो रही थी। प्रभु यीशु अपने चेलों को उनके आगे जीवन के बारे में निर्देश दे रहे थे।

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