Posts tagged Messiah
कहानी ८३: नासरत में वापसी और चेलों का भेजा जाना

कफरनहूम में अन्धे और मूक के उपचार के बाद, यीशु वापस नासरत अपने गृहनगर कि ओर गया।ऐसा करना एक बहुत साहसिक और बहादुरी का काम था। मसीह के विषय में हमने पिछली बार जो पढ़ा, नगरवासी एक चट्टान उसे दूर फेंकने की कोशिश में थे! यह कहानी शायद इस कहानी के होने के एक साल या डेढ़ साल पहले कि है।

Read More
कहानी ८४: शिष्यों का भेजा जाना 

यीशु के जीवन के विषय में पढ़ते समय आपनी ध्यान दिया होगा कि, मत्ती के अध्याय पूरी तरह से मिल गए हैं। उद्धारण के लिये, हमने पांचवे अध्याय से लेकर सांतवे अध्याय को पड़ने से पहले आठवे अध्याय को पढ़ा।

Read More
कहानी ८७: एक प्रकार का राजा

मत्ती कि किताब को जब आप पढ़ेंगे, आप देखेंगे कि पतरस को अधिक ध्यान दिया जा रहा था। वह इस प्रकार से कहानियों को बयान करता है कि उससे लगता है कि वह यीशु के करीबी मित्र है और चेलों का अगुवा भी।

Read More
कहानी ८८: जीवन कि सच्ची रोटी

यीशु ने पंद्रह हजार लोगों को खिलाने के लिए पर्याप्त भोजन में पांच रोटियां और दो ​​मछली खिलाईं। वे सभी उस दिन तृप्त होकर अपने घर को गए। उन्होंने जितना उसके शिक्षण कि बातों को लिया उतना ही भोजन पर भी किया।

Read More
कहानी ८९: जीवन कि रोटी (भाग II)

जब लोगों ने यीशु को सुना, वे बड़बड़ाने लगे और शिकायत करने लगे। वह कौन था ऐसा कहने वाला कि वह स्वर्ग से नीचे उतर के आया है? वे सब जानते थे कि वह नासरी से एक बढ़ई यूसुफ का पुत्र है। वे सब उसके माता और पिता। वह ऐसा कैसे दावा कर सकता था कि वह स्वर्ग से आया है?

Read More
कहानी ९२: चार हज़ार लोगों को खिलाना

यीशु और उसके चेले गलील के सागर के किनारे थे, लेकिन वे दिकापुलिस में थे। यह दस शहरों का अन्यजातियों का शहर था। इस यहूदी क्षेत्र के बाहर था। वहाँ के लोग ऐसे थे जिनके साथ यहूदी बैठ कर भोजन नहीं करेंगे! फिर भी बड़ी भीड़ यीशु को देखने के लिए उमड़ रही थी। तीन दिन के बाद, यीशु को भीड़ पर तरस आया। उनके पास कुछ खाने को नहीं था!

Read More
कहानी ९३: एक अंधा आदमी

चेले यीशु के संग बैतसैदा चले आये। वहाँ कुछ लोग यीशु के पास एक अंधे को लाये और उससे प्रार्थना की कि वह उसे छू दे। उसने अंधे व्यक्ति का हाथ पकड़ा और उसे गाँव के बाहर ले गया।

Read More
कहानी ९५: विश्वास की कमी

अगले दिन, यीशु के रूपांतरण होने के बाद वे पहाड़ से पतरस, याकूब और यूहन्ना के साथ जब वापस आये तो, भीड़ बाकी के चेलों को घेरी हुई थी। कुछ शास्त्री, जो धार्मिक अगुवे थे जो उनके साथ बहस कर रहे थे।

Read More
कहानी ९८: मिलापवाले तम्बू के पर्व पर यीशु येरूशलेम में: यीशु का आगमन 

येरूशलेम जाने के लिए जब यीशु और उसके चेलों ने गुप्त तरीके से रास्ता निकाला, तब यहूदी उसके आने कि इंतेजारी में थे। लोग आपस में यह बातें करते थे कि यदि वह एक अच्छा आदमी था या धोखेबाज़ जो लोगों को परमेश्वर से दूर ले जाना चाहता है।

Read More
कहानी १००: मिलापवाले तम्बू का पर्व: अंतिम दिन

इस्राएल के देश का यह तनाव और सोच विचार से भरा जश्न का अंतिम दिन था। क्या वे इस बात को स्वीकारते कि यीशु के पास परमेश्वर के द्वारा दी गयी सामर्थ और अधिकार है, जैसा कि वह कहता था? क्या वे उसे मसीह के रूप में स्वीकार करेंगे?

Read More
कहानी १०२: सत्तर चेलों को नियुक्त करके भेजा जाना 

यीशु अपने चेलों के साथ यहूदिया में ही था। मिलापवाले तम्बू का पर्व समाप्त हो गया था परन्तु यीशु के प्रति विरोध बढ़ गया था। येरूशलेम के धार्मिक अगुवे गुस्से से उबल रहे थे। जो लोग आपस में नफ़रत करते थे वे अब एक जुट होकर यीशु के विरुद्ध साज़िश रच रहे थे। उसे रोका जाना ज़रूरी था। वे उसे मरवा देना चाहते थे।

Read More
कहानी १०६: यीशु का भय 

फरीसी और शास्त्रि जब यीशु के खिलाफ साजिश रच रहे थे और सवालों से उसे फंसाना चाहते थे, यीशु फिर भी प्रचार करते रहे।निश्चित रूप से चेले इस बात को समझते थे कि यीशु के साथ उनकी वफादारी उनके जीवन को जोखिम में डाल सकती है।

Read More
कहानी ११०: युद्ध

प्रभु का दिन आने वाला है, और जिस समय यीशु पृथ्वी पर चला करते था, वह उसकी अपेक्षा करते थे। वो दिन न्याय का दिन होगा और अविश्वास और विद्रोह के विरुद्ध में आग होगी। जो उस पर विश्वास करेंगे उनके लिए उद्धार का दिन होगा।

Read More
कहनी १११: सुंदर सत्य, सुंदर चंगाई 

यीशु जब प्रचार करते जा रहे थे, वे उन भयानक विकृतियों और झूठ को खोलते जा रहे थे जिसने लोगों को भय और झूठे विश्वास में जकड़ा हुआ था। अपने स्वर्गीय पिता के विषय में झूठ सुनकर वह कितना अपमानित महसूस कर रहा होगा!

Read More
कहनी ११३: समर्पण का पर्व : जन्म से अँधा आदमी फरीसियों के साथ 

फिर उसके पड़ोसी और वे लोग जो उसे भीख माँगता देखने के आदी थे, उसे देख कर हैरान हुए। वह उस व्यक्ति के समान दिखता था जिसे वे हर रोज़ देखते थे लेकिन ऐसा कैसे हो सकता था? उन्होंने एक दूसरे से पुछा,“क्या यह वही व्यक्ति नहीं है जो बैठा हुआ भीख माँगा करता था?”

Read More
कहनी ११४: अच्छा चरवाहा और चोर

यीशु ने तीन साल से फरीसियों और धार्मिक नेताओं का सामना किया था। यह और भी अधिक स्पष्ट होता जा रहा था कि उनके दिल विद्रोह और पाप में पक्के हो गए थे। परमेश्वर कि सच्चाई को सुनने के बाद उसको अस्वीकार कर देना ही बहुत खतरनाक बात है।

Read More
कहनी ११७: स्वर्ग राज्य में पहले और अंतिम

पेरा जाने के लिए यीशु येरूशलेम और यहूदी के क्षेत्र को छोड़ कर यात्रा पर निकल पड़े। समर्पण का पर्व खत्म हो चूका था, और साढ़े तीन महीने तक यीशु येरूशलेम को वापस नहीं आएगा। वहाँ बहुत अधिक खतरा था। यहूदी यीशु को मारना चाहते थे, और जो वक़्त परमेश्वर पिता ने यीशु को नियुक्त किया था जब उसे अपने प्राण देने होंगे, वो वक़्त अभी नहीं आया था।

Read More
कहनी १२१: एक शिष्य होने की कीमत 

यीशु जब परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाते हुए पेरी को गए, बड़ी भीड़ उसके साथ गयी जहां जहां वो गया। यीशु के विरुद्ध धार्मिक अगुवों ने शत्रुता कि लंबी रेखा खींची, लेकिन वह अपने देश का सबसे प्रसिद्ध शिक्षक था। आधे से ज़यादा लोग उसे मसीहा समझ रहे थे!

Read More
कहनी १३४: सबसे बड़ा और सबसे छोटा 

चेले जब यीशु को सुन रहे थे, वे उसकी हर बात का विश्वास कर रहे थे। उनकी आशा और भविष्य़ उसकी बातों पर निर्भर करता था। उन्होंने सब कुछ का त्याग कर दिया था क्यूंकि वे उसकी बातों को गम्भीरता से लेते थे! और यीशु ने उन्हें बहुतायत से इनाम देने का वायदा किया है।

Read More
कहानी १४१: अंतिम सप्ताह कि शुरुआत: यंत्रणा का दूसरा दिन (सोमवार) 

यीशु ने यरूशलेम में स्तुति और प्रशंसा करते हुए प्रवेश किया। जब वह बछड़े के ऊपर बैठ कर आ रहा था लोग उसके साथ नाचते थे, और जकर्याह की भविष्यवाणी को पूरा कर रहे थे। उस दिन कि कहानियों का उस रात येरूशलेम में बहुत चर्चा हुई।

Read More