पाठ 16: मुंदिर मै साहस : पतरस खड़ा होता है

यीशु के ऊपर उठाये जाने और स्वर्ग में परमेश्वर के दाहिने हाथ पर बैठने के ठीक पहले उसने शिष्यों से वादा किया था कि वह उन्हें अपनी पवित्र आत्मा भेजेगा। ऐसा दस दिन पहले हुआ था, और अब आत्मा मसीह के विश्वासियों पर आग की जीभ की तरह उतर आई थी। दुनिया भर के लोगों की भीड़ उनके चारों ओर इकट्ठी हो गयी थी। चाहे वे कहीं से भी आए हों या उनकी कोई भी भाषा हो, ऐसा लगता था जैसे शिष्य सीधे उनसे बात कर रहे थे और वे समझ सकते थे। हर कोई चकित था। यह कैसे हुआ? इसका क्या अर्थ था? क्या यीशु के शिष्य नशे में थे?

पतरस भीड़ के सामने खड़ा हुआ, और ग्यारह उसके साथ खड़े हुए। इस पल से पचास दिन पहले, यीशु को क्रूस पर चढ़ाया गया था। उस भयानक दिन पर, जब याजक यीशु से पूछताछ कर रहे थे और उसे पीट रहे थे, तब पतरस ने झूठ बोला था और कहा था कि वह यीशु को बिल्कुल नहीं जानता था। वह डर गया था कि यदि उसने माना कि वह यीशु का शिष्य है, तो वे उसे भी पीटेंगे। तीन बार अलग अलग समय पर उससे पूछा गया कि क्या वह यीशु का चेला था, और उसने तीनों बार इनकार कर के कहा था कि वह यीशु को बिलकुल नहीं जानता है।

पतरस ने यीशु के साथ हर जगह जाकर तीन साल बिताए थे, और बार बार वह यही वादा करता रहा कि चाहे कुछ भी हो जाए वह यीशु के पीछे चलता रहेगा। फिर भी उस रात जब यह सबसे अधिक महत्वपूर्ण था, पतरस की वफ़ादारी विफल रही। तीसरी बार इनकार करने पर, एक मुर्गे ने बांग दिया। पतरस ने ऊपर आँखें उठायीं और देखा कि यीशु उस कमरे से उसकी ओर देख रहा था जहाँ उसे अपमानित और पीटा जा रहा था। पतरस शर्म और दु: ख से भर गया था। वह वहां से भाग गया। तब उन्होंने यीशु को क्रूस पर चढ़ाया। यीशु के जी उठने से पहले का समय पतरस के लिए कितना भयानक था। न केवल उसने इस व्यक्ति को खो दिया था जिसने उसे जीवन और आशा और उद्देश्य दिया था, उसने उसे सबसे ज़रूरत के समय पर धोखा दिया था ।

परन्तु यह अंत नहीं था। यीशु फिर से जी उठा। यह व्यक्ति जो बीमारी को ठीक कर सकता था और समुद्र को नियंत्रित में कर सकता था, उसने मृत्यु पर विजय प्राप्त की थी। अचानक, यीशु ने जो कुछ कहा था, वह सब कुछ नए तरीके से समझ में आने लगा था। पतरस ने देखा कि उसका मित्र और शिक्षक वास्तव में परमेश्वर का पुत्र था, और पतरस इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण कहानी में उसके साथ पकड़ा गया था।

फिर भी पतरस उस भयानक काम को नहीं भूल पाया जो उसने यीशु के साथ किया था। यीशु भी नहीं भूला था।

एक दिन, यीशु गलील सागर के किनारे पतरस को साथ ले गया। वह वही जगह थी जहां यीशु ने पतरस को अपना शिष्य होने के लिए बुलाया था। यीशु ने उससे पूछा, "क्या तू इनसे बढ़कर मुझसे प्रेम रखता है?" पतरस ने कहा, "हाँ प्रभु तू जानता है कि मैं तुझसे प्रीती रखता हूं।" पतरस का दिल कितना टूट गया होगा जिस प्रकार यीशु उससे पूछ रहा था। यीशु ने कहा, "मेरे मेमनों को चरा" वीशु ने फिर से उससे पूछा, "हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू मुझसे प्रेम रखता है?" पतरस अपने दिल में जानता था कि वह वास्तव में यीशु से प्रेम करता था। चाहे वह दबाव में आकर कितना विफल रहा उसका प्यार झूठ नहीं था। उसे मालूम था कि यीशु यह भी जानता था, क्योंकि यीशु सब कुछ जानता था। तब उसने कहा, "हाँ प्रभु तू जानता है कि मैं तुझसे प्रीती रखता हूँ ।" यीशु ने उत्तर दिया, "मेरी भेड़ों को चरा ।" तीसरी बार यीशु ने पूछा, "हे शमीन, बृहन्ना के पुत्र, क्या तू मुझसे प्रीती रखता है?" पतरस उदास हो गया कि यीशु ने उससे तीन बार पूछा। उसने कहा, "हे प्रभु, तू तो सब कुछ जानता है; तू यह जानता है कि मैं तुझसे प्रीती रखता हूँ।" यीशु ने फिर से पूछा, " मेरी भेड़ों को चरा अब पतरस उसी शहर में पवित्र आत्मा से भर कर खड़ा हुआ जिस शहर में यीशु को मारा गया था, और उसने इस्राएल की खोई हुई भेड़ की ओर देखा !