पाठ 9 : पतन

आदम और हव्वा एक साथ बगीचे में रहते थे। वह उसकी अनमोल सहायक और साथी थी। उस भव्य,विशाल पेड़ों और कोमल सूरज की रोशनी के बीच बिताये जीवन किकल्पना कीजिए! वे एक गहरे और भावुक प्रेम को अपनी मासूमियत और पवित्रता में साझा किया करते थे। उन दोनों के बीच आने वाली कोई भी बात नहीं थी। उनके बीच छिपाने वाली या शर्मिंदगी कि कोई बात नहीं थी।हव्वा हमेशा आदम के लिए बहुत सुंदरता ले कर आती थी। यह कभी भी फीका नहीं होने वाला था, और उसकी खुशी उसमें कभी भी कम या विचलित नहीं होगी। वे एक आदर्श, निष्पाप दुनिया में रहते थे इसीलिए उनके बीच अस्वीकृति या खो देने का कोई डर नहीं था। 

 

एक ऐसी दुनिया की कल्पना कीजिये जहां स्वतंत्र रूप के साथ बिना किसी डर के रहा जा सकता है। उन्हें घृणा या क्रोध या हिंसा जैसे शब्दों का मतलब भी पता नहीं था। वहां कोई झूठ या बिमारी या जानवरों या तूफान या उम्र से कोई खतरा नहीं था। कोई हिंसा या भुखमरी नहीं थी। परमेश्वर की निकटता में, वह जानता था कि प्यार और अपनी पत्नी का नेतृत्व कैसे करना है, और वह भी परमेश्वर कि अगुवाई में रहकर जानती की उसके प्यार की प्रतिक्रिया कैसे करनी है। वहाँ उन दोनों के बीच एक गहरा सद्भाव था, और परमेश्वर उन्हें देखकर खुश होता था। उनके और परमेश्वर के बीच आने वाली कोई बात नहीं थी। वे दिन के सुनहरे समय में परमेश्वर के साथ उस प्रकार चलते थे जैसे की दो प्रिय और विश्वसनीय दोस्त एक दूसरे के साथ चलते हैं। इस प्यार की शक्ति को कौन तोड़ सकता है? 

 

बगीचे में सब जानवरों में सबसे सुन्दर सर्प था। वह सभी जानवरों में सबसे चालाक प्राणी था। वह शानदार था, लेकिन यह परमेश्वर की भलाई के उज्ज्वल प्रतिभा के बराबर नहीं था। क्यूंकि आप देखिये, यह सर्प शैतान था, जो परमेश्वर का सबसे बड़ा दुश्मन था। वह स्खलित स्वर्गदूतों का नेता था, जो बुराई और कपट से भरा हुआ था। वह पाप और मृत्यु और विनाश को लाने के लिए अपने चालाक और आकर्षण करने वाले तरीकों का उपयोग करता है। वह परमेश्वर के सभी सुन्दर और अच्छे कामों के ऊपर अपनी बुराई की भूख से जीत हासिल कर लेता है। स्वर्ग में परमेश्वर को नष्ट करने की उस में कोई शक्ति नहीं थी। उस में स्वर्गीय स्वर्गदूतों को हराने कि भी शक्ति नहीं थी। सो उसे अपने बुरे काम करने के लिए एक और रास्ता खोजने की आवश्यकता थी। वह उसके पीछे जाएगा जिससे परमेश्वर गहरा प्यार करते हैं। वह मानवता के पीछे जाएगा। 

 

एक दिन जब वह अपने मन में कुछ गहरे और भ्रामक योजनाओं को बना रहा था, वह स्त्री के पास रेंगते हुए गया और उससे कहा, "“हे स्त्री क्या परमेश्वर ने सच—मुच तुमसे कहा है कि तुम बाग के किसी पेड़ से फल ना खाना?”'

 

हव्वा ने कहा, “नहीं परमेश्वर ने यह नहीं कहा। हम बाग़ के पेड़ों से फल खा सकते हैं। लेकिन एक पेड़ है जिसके फल हम लोग नहीं खा सकते । परमेश्वर ने हम लोगों से कहा, ‘बाग के बीच के पेड़ के फल तुम नहीं खा सकते, तुम उसे छूना भी नहीं, नहीं तो मर जाओगे।’” 

लेकिन साँप ने हव्वा से कहा, “तुम मरोगी नहीं। परमेश्वर जानता है कि यदि तुम लोग उस पेड़ से फल खाओगे तो अच्छे और बुरे के बारे में जान जाओगे और तब तुम परमेश्वर के समान हो जाओगे।”

 

आपने सुना उस सांप ने क्या कहा? उसने परमेश्वर को झूठा ठहराया! उसने एक सिद्ध और पवित्र परमेश्वर पर धोखेबाज़ होने का आरोप लगाया! यह कल्पना करना कितना मुश्किल है कि यह एक बहुत ही कुरूप अमंगल है। सांप भलीभांति जनता था की वह झूठ बोल रहा था। और उसके झूठ बोलने का कारण हव्वा को नष्ट करना था ताकि वह परमेश्वर की आदर्श दुनिया में मृत्यु और घृणा और हत्या जैसे पाप को ला सके। फिर भी वह उस परमेश्वर पर आरोप लगा रहा था जिसने उसे बनाया था। हमें इन चीजों के बारे में सोचना बहुत महत्वपूर्ण है। हमारे लिए यह समझना बहुत आवश्यक है क्यूंकि अब हम उसी दुनिया में रहते हैं जहां वह अपनी पूरी शक्ति के साथ काम कर रहा है। 

 

शैतान ने हव्वा के भरोसे को तोड़ने में अपना कार्य दिखा दिया जो वह अपने परमेश्वर पर करती थी। वह उसके मन में परमेश्वर के प्रेम और बुद्धि के विषय सवाल पैदा करने के लिए प्रयत्न कर रहा था जब उसने उन्हें फल खाने से मना किया था। वह पूरी कोशिश में था कि वह अपने परमेश्वर के प्रति अपने भरोसे और निर्भरता को तोड़ दे। वह चाहता था की वह निष्ठता से अपने परमेश्वर से दूर हो जाये। 

 

परमेश्वर के उस पवित्र बगीचे के बीच शैतान बगावत को लाना चाहता था। यह आदम और हव्वा परमेश्वर के निर्माण के मुकुट थे, और वे सभी जानवरों पर शासन करते थे। शैतान उन्हें परमेश्वर के विरुद्ध करके युद्ध कराना चाहता था। वह केवल स्त्री के पीछे नहीं था। वह उसके द्वारा परमेश्वर द्वारा रची गई सब चीज़ों का विनाश करना चाहता था। शैतान जानता था कि आदम और हव्वा का अपने परमेश्वर पर इतना अटूट विश्वास था कि उसने पूरी सृष्टि को उनके लिए दाव पर लगा दिया था। शैतान ने स्त्री के विश्वास पर हमला किया ताकि वह पूरे मानवजाति और परमेश्वर की बनाई हुई अद्बुद्ध सृष्टि पर हमला कर सके। वह पूर्ण रूप से दुष्ट था। 

 

उस झूठ के बारे में सोचिये जो शैतान ने स्त्री को कहा। उसने उस फल को ऐसे दर्शाया मानो वही एक आशीष है, जबकि परमेश्वर ने हव्वा  को पूरा बगीचा उसके आनंद लेने के लिए दिया था। शैतान परमेश्वर की आज्ञा को केवल एक सुझाव के रूप में हव्वा को दर्शा रहा था की वह उसे अनदेखा कर दे। वह यह दर्शाना चाहता था की परमेश्वर क्षुद्र और छोटा है और मानवजाति को अपनी प्रतिभा और ज्ञान से वंचित रखना चाहता है। लेकिन शैतान सच्चाई जानता था। परमेश्वर उन्हें उस ज्ञान से बचाना चाहता था जो उन्हें अकल्पनीय पीड़ा के द्वारा नष्ट कर सकता है। 

 

शैतान ने स्त्री से और पूरी दुनिया से वो सच्चाई छुपाई जो उन्हें अनाज्ञाता के कारण नष्ट कर सकता था। वह प्रलोभन, पाप, दुख, और मौत के विषय में नहीं जानती थी। वह परमेश्वर के उस महान उपहार को नहीं समझ पा रही थी जो वह उसकी रक्षा के लिए देना चाहते थे। यदि उसने परमेश्वर पर भरोसा किया होता तो यह सब कुछ कभी नहीं होता। वह परमेश्वर की आज्ञा को मान सकती थी और यही विश्वास से मानी गई आज्ञा काफी थी। 

 

बगीचे के सौंदर्य के बीच, जहाँ पेड़ों के बीच से धूप की रौशनी चमक रही थी, स्त्री  शैतान कि दुष्ट साज़िश को देख नहीं पाई। परमेश्वर के प्रति उसका प्यार और वफ़ादारी कहां चले गए थे? उसका निर्दोष विश्वास कहां था? क्यों उसने परमेश्वर के उस कोमल भरोसे को छोड़ शैतान पर विश्वास किया?

 

हम नहीं जानतेकि उसने ऐसा क्यूँ किया। हम नहीं जानते की वह ऐसा कैसे कर सकती थी। लेकिन उसने किया। उसने उसी फल कि ओर देखा जो वह एक बार नज़रअंदाज़ कर चुकी थी। उसे देखकर उसे लगा कि वह कितना सुंदर और स्वादिष्ट और मीठा होगा। उसने सोचा की वह उसे परमेश्वर के समान वो ज्ञान देगा, जो परमेश्वर ने कहा था की उसे वह नहीं पाना है और उसने उसे ही चाहा। उसने उस हद को पार किया जो परमेश्वर ने मानवता और उस पेड़ के खतरों के बीच रखा था। उसने उस पाप की आज्ञाकारिता की रेखा को पार कर उस अच्छे और बुरे के ज्ञान के पेड़ से फल तोड़ा और उसे खा लिया। 

यीशु को देखना:

इसकी कल्पना करें। परमेश्वर जानता था कि आदम और हव्वा ने जो किया था, उसका मतलब था कि उसके पुत्र को आकर मृत्यु सहनी होगी, फिर भी उसने उन पर बड़ा अनुग्रह किया। एक दिन,परमेश्वर के क्रोध को क्रूस पर यीशु को अपने ऊपर लेना होगाIऐसे पाप के लिए उसका क्रोध, उस फल का खाना, उस भयानक लेकिन पूरी तरह से विजयी दिन के लिए परमेश्वर ने अपने क्रोध को संचय करने की शुरुआत की थी, जब यीशु अपने पीड़ादायक बलिदान के माध्यम से हर पाप का भुगतान करेगाI परमेश्वर यह सब जानता था, फिर भी देखो कि कैसे वह शांति से और प्यार से वाटिका में अपने बच्चों के पास आया था। कितना अद्भुत परमेश्वर है!




लेकिन अभी यहीं समाप्त नहीं हुआ। वह पाप

 में और अधिक गिरती चली गयी। उसने उस

वर्जित फल को अपने पति को भी दिया। उसे

 परमेश्वर ने उसका सहायक बनाया था

ताकि वे परमेश्वर के साथ साथ चलें, परन्तु

 वह उसकी प्रलोभिका बन गयी और उसे

भी परमेश्वर से दूर कर दिया। उसे उसका

मार्गदर्शक और रक्षक बनाया था परन्तु वह

उसी का कठपुतली बन गया। परमेश्वर

को छोड़ वह अपनी पत्नी कि आज्ञा मानने

 लगा। 

 

जब वे एक साथ उस फल को खा रहे थे

 तब उनमें कुछ बदलाव आया। उनकी

अपनी आँखों से वह सब कुछ देख पा रहे

थे और समझ पा रहे थे जो वे पहले कभी देखनहीं पाए। जो शैतान ने वायदा किया था वह उस फल ने कर दिखाया, सिर्फ यह की उसने उन्हें सारी बात नहीं बताई थी। अब उन्होंने बुराई को समझा। वे बुराई की आँखों से देख सकते थे और वह बहुत शक्तिशाली और आकर्षक था। उनके ऊपर एक ऐसी शक्ति थी जिसे उन्होंने कभी नहीं महसूस किया था। 

परमेश्वर ने मनुष्य कि आत्माओं को बुराई में हिस्सा लेने के लिए नहीं बनाया था। उसने उन्हें खुद का एक हिस्सा बने रहने के लिए उन्हें बनाया, और अब वे उससे अलग हो गए थे। अचानक उन्हें लगा किवे नग्न थे, और वे शर्मिंदा थे। अब एक दूसरे के साथ स्वतंत्र स्वभाव में नंगे और पूर्ण और भरोसे के साथ नहीं चल सकते थे। उनके पाप के कारण उनकी निकटता और विश्वास और प्रेम टूट गया था और अब वे अलग हो गए थे। उन्होंने जल्दी से एक अंजीर के पेड़ की पत्तियों से अपने कपड़े बनाए। 

 

जब वे अपने अपमान और शर्म से अपने आप को छुपा रहे थे तभी उन्होंने वो आवाज़ सुनी जिससे वह भयभीत थे। परमेश्वर बगीचे में उनकी तरफ चल कर आ रहा था। वे उससे छिप रहे थे क्यूंकि वे उसे देखना नहीं चाहते थे। वे अपने अपमान और विद्रोह के कारण उसकी पवित्रता का सामना नहीं करना चाहते थे। लेकिन परमेश्वर उनके पास स्वयं चल कर आ रहा था। वह जानता था कि उन्होंने क्या किया है और वह फिर भी उनसे प्रेम करता था। उसने पुकार कर कहा, "कहां हो?"

 

आदम ने कहा, “मैंने बाग में तेरे आने की आवाज सुनी और मैं डर गया। मैं नंगा था, इसलिए छिप गया।”

यहोवा परमेश्वर ने आदम से पूछा, “तुम्हें किसने बताया कि तुम नंगे हो? तुम किस कारण से शरमाए? क्या तुमने उस विशेष पेड़ का फल खाया जिसे मैंने तुम्हें न खाने की आज्ञा दी थी?”

अब सुनिए कि आदम ने क्या किया। उसने हां में जवाब नहीं दिया, जो सत्य था। उसने किसी और पर दोष लगाया। 

आदम ने कहा, “तूने जो स्त्री मेरे लिए बनाई उसने उस पेड़ से मुझे फल दिया, और मैंने उसे खाया।”

उसके हृदय में पाप आने के कारण वह अपनी पत्नी के विरुद्ध कितनी जल्दी हो गया था। 

 

तब यहोवा परमेश्वर ने हव्वा से कहा, “यह तूने क्या किया?” 

एक बार फिर दोष किसी और पर लगाया जा रहा था। 

हव्वा ने कहा, “साँप ने मुझे धोखा दिया। उसने मुझे बेवकूफ बनाया और मैंने फल खा लिया।”

 

परमेश्वर ने आदम और हव्वा को अपनी छवि में बना कर उन्हें एक महान सम्मान दिया। वे विश्व के सबसे उच्च प्राणी थे परन्तु अब वे उस साँप के स्वभाव में आ गए थे। वे सच्चाई में कुलबुलाते और रेंग रहे थे, और उस परमेश्वर को धोखा देकर बचना चाहते थे जो सब कुछ जानता था। उस सर्प की आवाज परमेश्वर के दुश्मन कि आवाज़ थी, और हव्वा और आदम ने परमेश्वर के विरुद्ध अपनी निष्ठा को दिखाया। वे अपने परमपवित्र राजा की भलाई से हठ कर झूठ के प्रणेता की ओर चले गए। पाप ने उन्हें अंधा करना शुरू कर दिया था। वे भ्रष्ट और कलंकित हो रहे थे। इससे परमेश्वर का हृदय कितना दुखी हो गया होगा। 

 

परमेश्वर की कहानी पर अध्ययन। 

परमेश्वर इतना पवित्र है कि वह ऐसा कोई भी काम नहीं करता जो बिल्कुल, सही और शुद्ध न हो। हम उसकी महान भलाई को नहीं समझ सकते। उसके भीतर बहुतायत की पवित्रता है। क्या आप इस बात से खुश नहीं यह जानकर की जो परमेश्वर स्वर्ग में विराजमान है वह सदा धर्मी, और सदा भरोसेमंद के योग्य है? 

 

मेरी दुनिया, मेरे परिवार, और स्वयं पर लागू करना। 

आदम और हव्वा ने उस हद्द को पार किया जो परमेश्वर ने ठहराया था। उन्होंने परमेश्वर कि धर्म सीमा को पार कर पाप में कदम रख दिया था। परमेश्वर के बजाय उन्होंने शैतान और अपनी इच्छाओं को पूरा किया। एक पल के लिए अपने दिल को खोजें। प्रार्थना कीजिये: "हे प्रभु मुझे अपनी अवज्ञा की रेखा को दिखाइए जो मैंने पार कि हो।" क्या आप कोई ऐसी बात बाटना चाहेंगे जो आपने परमेश्वर की अनज्ञाता में की हो? क्या आप कोई ऐसी बात बाटना चाहेंगे जो आपने किसी दूसरे से कराई जिस प्रकार हव्वा ने आदम से कराई? क्या आप यीशु से क्षमा माँगना चाहेंगे? क्या ऐसा कोई तरीका है जिससे आप एक दूसरे कि मदद कर सकें जिससे की आप परमेश्वर के आज्ञाकारी बन जाएं?

 

हमारे जीवते परमेश्वर के प्रति हमारा प्रतिउत्तर। 

हमारे पवित्र परमेश्वर के लिए क्या आप कोई भजन गाना चाहेंगे? आप कोई कविता या नृत्य करना चाहेंगे? आपके मस्तिष्क में क्या परमेश्वर कि पवित्रता किऐसी तस्वीर है जो दिखाए की वो कैसा दिखता होगा? जिस परमेश्वर ने आपको बनाया उसके लिए कोई भजन संहिता पढ़ सकते हैं? 

 (आप भजन संहिता 30 : 4-5, 10-11 पढ़ना चाहें): 

 

"परमेश्वर के भक्तों, यहोवा की स्तुति करो!
उसके शुभ नाम की प्रशंसा करो।
यहोवा क्रोधित हुआ, सो निर्णय हुआ “मृत्यु।”
किन्तु उसने अपना प्रेम प्रकट किया और मुझे “जीवन” दिया।
मैं रात को रोते बिलखाते सोया।
अगली सुबह मैं गाता हुआ प्रसन्न था।

हे यहोवा, मेरी प्रार्थना सुन और मुझ पर करुणा कर!
हे यहोवा, मेरी सहायता कर!”

मैंने प्रार्थना की और तूने सहायता की! तूने मेरे रोने को नृत्य में बदल दिया।
मेरे शोक वस्त्र को तूने उतार फेंका,
और मुझे आनन्द में सराबोर कर दिया।"