पाठ 6: दुष्ट आहाज

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उज्जिय्याह राजा के शासन के दौरान परमेश्वर ने यशायाह से बात की थी । परमेश्वर के सिंहासन के सामने उसके उच्च बुलाहट के बाद, यशायाह कम से कम तीन राजाओं को परमेश्वर के लिए भविष्यवाणी करेगा । उन्हें सोचना होगा यदि वे यशायाह की सुनकर परमेश्वर के रास्तों पर चलेंगे, उसकी उपासना सही रूप से मंदिर में करेंगे, या फिर वे उसको अस्वीकार करेंगे और अन्य देवताओं और शक्तियों पर अपना भरोसा रखेंगे ।

 

योताम, जो उज्जिय्याह का बेटा था, मरने से पहले सोलह वर्ष तक यहूदा का राजा रहा । यशायाह योताम राजा के लिए नबी था, जो उसे परमेश्वर के वचनों को बताता था और यहूदा के लोगों को पश्चाताप करने का मौका देता था । वह एक अच्छा राजा था I परमेश्वर की नज़र में जो अच्छा था वह वही करता था । फिर भी यहूदा के लोग उच्च स्थानों में मूर्तियों को पूजते रहे I उन्होंने परमेश्वर पर भरोसा नहीं किया I परमेश्वर अपने लोगों के पास आना चाहता था और उन्हें आशीष देना चाहता था, लेकिन प्रति वर्ष उन्होंने पश्चाताप नहीं किया और अपनी राह पर चलते रहे ।

 

जब योताम की मृत्यु हुई, उसका पुत्र आहाज राजा बना । उसने कोई भी काम परमेश्वर की नज़र में सही नहीं किया । वह एक अच्छा राजा नहीं था । वह परदेश के राष्ट्रों की मूर्तियों को पूजता था और उनके देवताओं के आगे बलि चढ़ाता था । उसने स्वयं के पुत्रों को भी उन देवताओं की वेदी पर बलिदान के रूप में जीवित जलाया ताकि वह उन देवताओं से वह करा सके जो वह चाहता था । ऐसे देश में जहाँ युवा राजकुमारों का भी क़त्ल किया जाता था, कोई भी सुरक्षित नहीं था । उसने यहूदा के लोगों का ऐसी गड़बड़ी और भय के साथ नेतृत्व किया ।

 

आहाज इतना दुष्ट था कि परमेश्वर ने शीघ्र न्याय किया । सीरिया की सेना और इस्राएल के पूर्व राज्य ने मिलकर यहूदा पर जीत हासिल की । सीरिया की सेना यहूदा के साथ युद्ध करने के लिए चल दी । उन्होंने उन पर आक्रमण किया और उनके हज़ारों लोगों को बंदी बनाया । उत्तरी राज्यों के विरुद्ध यहूदा के युद्ध में, यहूदा के सैकड़ों सिपाही मारे गए । उत्तरी राज्य की जीत के बाद, वे यहूदा की दो लाख स्त्रियों को उनके घरों से ले गए और उन्हें उत्तरी राज्य में ले आए । दक्षिणी साम्राज्य के खजाने को लूट लिया गया था ।

 

उत्तरी साम्राज्य के लोग यहूदा के बंदियों को, उनके यहूदी साथियों और परमेश्वर के बच्चों को गुलाम बनने के लिए मजबूर कर रहे थे । लेकिन उत्तरी साम्राज्य के बहुत से लोगों ने यह महसूस किया कि यहूदियों को, परमेश्वर के परिवार में अपने स्वयं के लोगों को, गुलामी में ले जाना कितना बुरा पाप था । परमेश्वर की व्यवस्था को तोड़ने का एक बहुत गंभीर और अपमानजनक तरीका था । इसलिए उन्होंने यहूदा के बन्धुओं को घर वापस भेजने का निर्णय लिया । उन्होंने नग्न लोगों को कपड़े दिए और कमजोरों को गदहे पर बैठाया । तब वे उनके साथ दक्षिण की ओर लंबी मील की दूरी पर गए और उन्हें उनके गांवों और कस्बों में लौटा दिया ।

 

युद्ध समाप्त हो गया था, लेकिन यहूदा युद्ध के कारण और जीवन के नुकसान से टूट गया था । युद्ध के समय, खेती बंद हो जाती है, इसलिए कम भोजन का उत्पादन होता था । भेड़-बकरियां और पशु के झुंड जीतने वाली सेनाओं द्वारा लिए जाते हैं, इसलिए मांस या चमड़े या ऊन या दूध देने वाले कुछ जानवरों को छोड़ दिया गया था । कई बच्चों ने युद्ध में अपने पिता को खो दिया था । कई पत्नियों ने अपने पति खो दिया I बहुत से लोग नहीं जानते थे कि उनके परिवार कहां थे, या यदि वे अभी भी जीवित थे ।

 

ये भयानक घटनाएं इसलिए हुईं क्योंकि राजा आहाज और उसके लोगों ने परमेश्वर  पर भरोसा नहीं किया था । परमेश्वर उन्हें इन महान चेतावनियों को दे रहा था, लेकिन इस सब के बाद भी, उन्होंने पश्चाताप नहीं किया । उसने परमेश्वर पर अपना विश्वास नहीं रखा और ना अपने बुरे मार्गों से मुड़े । वास्तव में, वह और भी पापी हो गया ! और इसलिए सब कुछ बुरे से और बदतर हो गया । सीरिया की सेनाएं और उत्तरी राज्य लौट गए I उन्होंने फिर से चढ़ाई की और यहूदा के सभी नगरों और कस्बों पर विजय प्राप्त की । तब शक्तिशाली सैनिकों ने यरूशलेम के महान शहर की ओर चढ़ाई की और उनकी दीवारों को घेर लिया ।

 

राजा आहाज ने फैसला किया कि वह अश्शूर के शक्तिशाली राष्ट्र से सहायता मांगेगा । उसने उनके राजा, तिग्लैथ-पिलेसर III को मंदिर से सोने और चांदी भेजे और उसका दास बनने का वादा किया । राजा उसे मदद करने के लिए सहमत हुआ, लेकिन इसका मतलब था कि दक्षिणी साम्राज्य अब अपना ही देश नहीं रहा । अब से, उन्हें सब कुछ अश्शूर के लिए देना होगा ।

 

टिग्लैथ-पिईलर III ने सैनिकों को सीरिया के कैपिटल, दमिश्क के शहर, में भेज दिया, और उन्होंने उसे जीत लिया । उन्होंने दमिश्क के सभी लोगों को अपने शहर से बाहर निकाल दिया और उन्हें एक अलग देश में जाने के लिए मजबूर किया । यहूदा के दुश्मन चले गए ! इस समय ऐसा लग रहा था मानो राजा आहाज बहुत चालाक हो । उसने इस राजा तिग्लैथ-पिलेसर III के साथ एक बहुत मजबूत दोस्ती बना ली थी, और यहूदा के लोग सुरक्षित होंगे । लेकिन अश्शूर के राजा की सहायता मुफ़्त नहीं थी । अश्शूर के राजा ने उन्हें अपने दुश्मनों पर विजय प्राप्त करने के लिए इस प्रकार की त्वरित, क्षणिक मदद की I परन्तु वह यहूदा और राजा आहाज के लोगों से गुलामों की तरह काम कराएगा । उनका राष्ट्र अब अश्शूर देश का दास था । उन्हें सबसे उच्च परमेश्वर के दास होना था, लेकिन अब वे किसी दूसरे देश के नियंत्रण में थे ।

 

राजा आहाज ने दमिश्क जाकर राजा तिग्लैथ-पिलेसर को सहायता करने के लिए  धन्यवाद दिया । जब वह दमिश्क में था, उसने एक मूर्ति के लिए एक वेदी देखी जिसे वह पसंद करता था । उसने अपने लोगों को वैसी वेदी बनाने को कहा जैसी दमिश्क में थी और यरूशलेम में परमपवित्र परमेश्वर के मंदिर में रखने का आदेश दिया । उसने उस पवित्र वेदी को प्रतिस्थापित किया जो राजा सुलैमान द्वारा सैकड़ों वर्ष पहले मंदिर के लिए समर्पित थी I राजा सुलैमान के दिनों में, परमेश्वर ने स्वर्गीय आग से उस पवित्र वेदी पर पहले बलिदान को जलाया था I तब यहोवा की महिमा से मंदिर धुएं के समान भर गया । अब राजा आहाज ने पवित्र वेदी को अलग रखा और इसे दूसरे देवताओं के लिए बनाई गयी उन मूर्तियों के साथ प्रतिस्थापित किया । उसने अश्शूर के राजा को प्रसन्न करने के लिए ये सब काम किये । उसने यहोवा को प्रसन्न करने की परवाह नहीं की ।

 

नई अफवाहें आईं । सीरिया और उत्तरी राज्य ने एक और गठबंधन बनाया I उन्होंने अश्शूर देश से स्वयं को बचाने के लिए एक-दूसरे से मिलकर काम करने का वादा किया । उन्होंने यहूदा पर फिर से हमला करने की साजिश रची । राजा आहाज और यहूदा के सभी लोगों ने ये अफवाहें सुनीं और डर गए । आहाज एक बार फिर से अश्शूर के राजा से सहायता मांगना चाहता था I क्या वह अपने परमेश्वर के साथ एक बार फिर से अवहेलना करेगा या आखिरकार वह ज़रूरत के समय में इस्राएल के परमेश्वर की ओर मुड़ सकता है ?