पाठ 5: यहोवा के अजीब संदेश

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यशायाह स्वर्ग में सबसे पवित्र परमेश्वर के सिंहासन कक्ष में था । वह सारी सृष्टि के प्रभु के समक्ष खड़ा था जो पूरे ब्रह्मांड पर अपनी शक्ति के साथ राज्य करता है । परमेश्वर की उपस्थिति की उज्ज्वल, शुद्ध पवित्रता ने यशायाह को दिखाया कि वह पाप के कारण कितनी गंदगी में था और परमेश्वर ने उसे शुद्ध किया था । एक उज्ज्वल, ज्वलंत, दिव्य सराफ ने उसे शुद्ध करने के लिए यशायाह के मुंह पर एक जलते हुए कोयले से छुआ था । परमेश्वर यहूदा के लोगों के लिए एक विशेष संदेश देने के लिए यशायाह को ऊपर उठा रहा था I यह एक अजीब संदेश भी था । परमेश्वर ने ऐसा कहा:

 

“जा और लोगों से कह: ‘ध्यान से सुनो, किन्तु समझो मत! निकट से देखो, किन्तु बूझो मत।’  लोगों को उलझन में डाल दे। लोगों की जो बातें वे सुनें और देखें, वे समझ न सके। यदि तू ऐसा नहीं करेगा तो लोग उन बातों को जिन्हें वे अपने कानों से सुनते हैं सचमुच समझ जायेंगे। हो सकता है लोग अपने—अपने मन में सचमुच समझ जायें। यदि उन्होंने ऐसा किया तो सम्भव है लोग मेरी ओर मुड़े और चंगे हो जायें !”

 

आपको समझ में आया ? इसे फिर से पढ़ें । आपके विचार से इसका क्या आशय है ?

 

परमेश्वर ने यशायाह को इस्राएल और दुनिया के लोगों को संदेश देने के लिए भेजा था । यशायाह को यहूदा के राजाओं और उनके लोगों को यह बताने के लिए भेजा गया था कि परमेश्वर उनसे प्रसन्न नहीं था । वे पाप और शर्म से भरे हुए थे और परमेश्वर के मार्गों को उन्होंने अस्वीकार किया था । यशायाह उन्हें बताता था कि उन्हें अपने तरीके बदलने होंगे । यह ऐसा है जो अधिकतर लोग सुनना नहीं चाहते हैं, है ना? इसलिए यशायाह ने उन्हें बताया कि यदि वे परिवर्तित नहीं होते हैं तो परमेश्वर उनका न्याय करेगा ।

 

परमेश्वर दयालु है, और वह अपने लोगों को उसके प्रति अपने दिलों को बदलने का एक और मौका दे रहा था । लेकिन परमेश्वर जानता था कि वे यशायाह के संदेश को अस्वीकार करेंगे । यही कारण है कि परमेश्वर ने कहा कि वे "हर दम सुनेंगे, लेकिन कभी भी समझ नहीं पाएंगे ।" वे यशायाह के सन्देश को सुनेंगे, लेकिन इसे समझना नहीं चाहेंगे । उनके हृदय परमेश्वर के विरुद्ध कठोर और कड़े हो जायेंगे, इसलिए वे सत्य को कम से कम देखते और सुनते जाएँगे । जितना अधिक वे यशायाह के संदेश को अस्वीकार करेंगे, उतना ही उनके सख्त दिलों का चंगा होना असंभव होगा । भयानक बातें इसलिए होंगी क्योंकि उन्होंने अपने पापों से पश्चाताप और परमेश्वर पर भरोसा करने से इनकार कर दिया था ।

 

यशायाह जब परमेश्वर के साथ सिंहासन कक्ष में था, तो परमेश्वर की शुद्धता और पवित्रता ने उसे दिखाया कि वह कितना पापी था । क्या वह परमेश्वर पर क्रोधित हुआ या परमेश्वर को अस्वीकार किया ? नहीं ! वह नम्र था ! उसने पश्चाताप किया ! वह उन ग़लत बातों के लिए बहुत खेदित था जो उसने की थीं । यशायाह को परमेश्वर की पवित्रता के विषय में यहूदा के लोगों को बताना होगा I उसे उनसे उसी प्रकार पश्चाताप कराना होगा जिस प्रकार उसने किया था । उनमें से कुछ होंगे जो करेंगे । उन्हें अवशेष कहा जाता है I उनका दिल अधिक से अधिक नरम होगा और सच्चाई के लिए खुलेगा । वे सही तरीके से स्पष्ट रूप से देखेंगे और परमेश्वर उन्हें उनके पाप और लज्जा से चंगाई देगा ।

 

परन्तु परमेश्वर ने यशायाह को चेतावनी दी थी कि यहूदा के अधिकांश लोग उसे अस्वीकार करेंगे । वे उन वचनों को अनदेखा करेंगे जो परमेश्वर ने उन्हें दिए गए थे और जो वे करना चाहते थे वह करते रहेंगे । यह परमेश्वर की ओर से कुछ सुनना और उसे अस्वीकार करना एक बहुत ही खतरनाक बात है । यह संदेश प्रभु परमेश्वर और यशायाह दोनों के लिए कितना दुखद था । परमेश्वर कितना अपने प्यार के उज्ज्वल, पवित्र शुद्धता के साथ अपने लोगों को आशीर्वाद देने की इच्छा रखता था । यशायाह अपने प्रभु के सामने अपने ही लोगों को सही और पूर्ण देखने की कितनी कामना करता था । वे भी परमेश्वर के साथ उसी प्रेम और शक्ति के एक अद्भुत, शुद्ध, सही संबंध को पा सकते जिस प्रकार उसका परमेश्वर के साथ था । परन्तु परमेश्वर जानता था कि उनमें से अधिकतर लोग दूर हो जाएंगे और दुष्टता का जीवन चुन लेंगे । परमेश्वर की योजना उन्हें न्याय करने की थी । वह जानता था कि परमेश्वर के बच्चों को अपने पापों से शुद्ध करने का एकमात्र तरीका था उनकी सुरक्षा को दूर करना और उन्हें अपने पापों की पूरी विनाशकारी शक्ति महसूस करने देना ।

 

परमेश्वर सारे मानव इतिहास के और सभी देशों के ऊपर राज्य करता है । वह दुनिया के महान राज्यों की शक्तिशाली सेनाओं को इस्राएल के लोगों पर न्याय करने के लिए उपयोग करेगा । सौ वर्षों से, परमेश्वर ने इस्राएल की उनके पापों के बावजूद रक्षा की । परमेश्वर अब यशायाह को दिखाता है कि अगले दो सौ वर्षों में, पूर्वी और दक्षिण राज्य पर अन्य राष्ट्र हमला करेंगे और उन्हें नाश करेंगे । इस्राएल का पूरा राष्ट्र चला जाएगा । उनके शहर बेकार हो जाएँगे, और लोगों को ज़बरदस्ती वहाँ से छोड़ना होगा । स्वर्ग के परमेश्वर ने उन्हें परमेश्वर के इस दुनिया में याजक होने के लिए बुलाया था । इसके बजाय उन्होंने झूठे देवताओं की उपासना की I लेकिन परमेश्वर के पास अभी भी आशा का अद्भुत सन्देश था ।

यह न्याय इस कहानी का अंत नहीं था । इस्राएल का देश कुचला जाएगा, और अधिकतर यहूदियों को वादे के देश को छोड़ विभिन्न देशों में जाना होगा । उन्हें ऐसे स्थानों में रहना होगा जहाँ की भाषा वे नहीं बोल सकते थे । वे ग़ुलामों की तरह रहेंगे I लेकिन परमेश्वर अपने लोगों को शुद्ध करने के लिए ऐसे कठोर न्याय का उपयोग करेगा । और कई वर्षों के बाद, परमेश्वर धर्मी, शुद्ध बचे हुओं को दूर देशों से इस्राएल में ले आएगा । वह देश को उन लोगों से फिर से बहाल करेगा जिन्होंने अपना भरोसा परमेश्वर पर रखा था ।

जिस समय ये सब बातें उस पर प्रकट की जा रही थीं, यशायाह परमेश्वर के सिंहासन के सामने खड़ा रहा । परमेश्वर ने यशायाह को बताया कि ये यहूदा के राज्य के साथ घटेगा, लेकिन उसने यह नहीं बताया कि कब । यशायाह ने अपना बाकि का जीवन इन बातों को राजाओं और यहूदा के लोगों को भविष्यवाणी देने में बिताया । उसका सन्देश परमेश्वर का अद्भुत अनुग्रह और धीरज से भरा सन्देश था, जिसके द्वारा उन्हें पश्चाताप करने का बार बार मौका मिल रहा था । फिर भी यशायाह को मालूम था कि बहुत थोड़े हैं जो सुनेंगे, और एक दिन, यहूदा का सर्वनाश होगा ।