पाठ 6: मूसा के नियम , आज्ञाएँ, मंदिर

परमेश्वर ने मूसा और इस्राएलियों के साथ एक विशेष वाचा बनाई थी। वे अब्राहम के वंश थे। वे उसके चुने हुए लोग थे! वे दुनिया के लिए एक याजकों का देश बनने जा रहे थे। परमेश्वर को किस प्रकार प्रसन्न करना है इसके विषय में उसने उन्हें एक बहुत ही सुंदर उपहार दिया। इसे नियम कहा जाता था। यह नियमों का एक संचय था जिसके द्वारा इस्राएलियों ने अपने परमेश्वर को प्रसन्न करना सीखा !

पूरा नियम बहुत लंबा है। परमेश्वर ने इस्राएलियों को दस आज्ञाएँ नामक नियमों का एक छोटा संस्करण दिया। उन्हें याद रखना बहुत आसान था। ये दस आज्ञाएं परमेश्वर के लिए इतने महत्वपूर्ण है कि उसने पत्थर की पटियों पर अपनी उंगली से उन्हें लिखा ताकि इस्राएली उन्हें मानें। परमेश्वर ने मूसा को उन पत्थर की पटियों को एक महान और सामर्थी दिन पर सिने पर्वत नामक स्थान पर दिया। पवित्र परमेश्वर की भयानक उपस्थिति पर्वत के शिखर पर गहरे, काले बादलों और जोरदार गरज और बिजली के बीच में आई। मूसा उन अग्रिमय बादलों में परमेश्वर के साथ बात करने के लिए चला गया। परमेश्वर ने उसे वहां कई बातें बताई। उसने मूसा को दस आज्ञाएं दीं, और उसने मूसा को, एक सुंदर सन्दूक, या एक बड़ा सुनहरा संदूक कैसे बनाना है, बताया। उसने मूसा को सन्दूक के अंदर दस आज्ञाओं को रखने के लिए कहा। सन्दूक के प्रत्येक तरफ सुनहरे स्वर्गदूत थे जिन्हें करूब कहा जाता था। स्वर्गदूतों के पंख के आकार इस प्रकार बने थे जिनसे संदूक को ऊपर से ढंका जा सके । दो कस्बों के बीच टन के बीच की जगह को करुणा का सिंहासन कहा जाता था।

सिने पर्वत पर रहते हुए, परमेश्वर ने मूसा को एक विशेष तम्बू या पवित्र स्थान भी बनाने का आदेश दिया। यह एक बड़ा तम्बू था जिसके चारों ओर एक आंगन था ।। सुनहरा सन्दूक पर्दे के पीछे तम्बू के अंदर एक पवित्र कमरे में रखा गया था जो अति पवित्र स्थान कहलाता था। जब तम्बू पर परमेश्वर की उपस्थिति नीचे आती थी, तो वह सुनहरे सन्दुक पर ठहर जाती थी, जो कि परमेश्वर के लिए एक पावदान की तरह था। क्योंकि आप देखें, यह तम्बू पृथ्वी पर परमेश्वर का पवित्र महल था, और अति पवित्र स्थान उसका सिंहासन कक्ष था। यह मुसा के लिए परमेश्वर के साथ मिलने और परमेश्वर की इच्छा जानने का स्थान था ताकि वह देश का नेतृत्व कर सके। यह परमेश्वर की विशेष रूप से शक्तिशाली उपस्थिति का स्थान था, जो उसकी महिमा से पवित्र किया गया था। जब मूसा तम्बू में जाता था, तब इस्राएली परमेश्वर की उपस्थिति को तम्बू पर धुएँ के समान नीचे आते देखते थे। उन क्षणों में, परमेश्वर की उपस्थिति उतनी ही शक्तिशाली होती थी जितनी अदन की वाटिका में, जब वह आदम और हवा से भेंट करने आता था। आदम और हव्वा के अभिशाप आने से पहले, प्रत्येक

व्यक्ति परमेश्वर की उपस्थिति में आनंदित रहता था। परन्तु अब केवल मूसा को विशेष समय पर जाने की अनुमति थी। इस्राएल के शेष लोग अति पवित्र स्थान में नहीं जा सकते थे। महअभिशाप मानव जाति पर था, और मनुष्य पाप और विद्रोह से भरा हुआ था। उन्हें परमेश्वर से अलग रहना पड़ा।

परमेश्वर जानता था कि सभी मनुष्य अपने हृदय में पापी थे। वह जानता था कि कोई भी मनुष्य सही नहीं हो सकता है, और कोई भी पूरी तरह से उसके नियम का पालन नहीं कर सकता है। इस्राएल के पाप के कारण परमेश्वर का क्रोध उन पर भड़केगा । वह अपने लोगों के निकट कैसे आएगा? उनके पाप की गंदगी और विषाक्तता परमेश्वर की वेदी को प्रदूषण करेगा, और उसका क्रोध उनके विरुद्ध भड़केगा। उस शुद्धिकरण को किस प्रकार लाया जाए जिसकी उनको आवश्यकता थी? परमेश्वर ने इस्राएलियों के लिए उसके पास आन और पश्चाताप करने का रास्ता निकाला । "पश्चाताप करने का अर्थ है, हृदय में गहरे पाप के लिए गहरा पश्चाताप करना, और दूसरी ओर मुड़ने और फिर कभी पाप न करने का निर्णय लेना जब एक इखाएली परमेश्वर के विरुद्ध पाप करता था, तो उन्हें अपने पाप को स्वीकार करना होता था, या यह स्वीकार करना कि उन्होंने गलत किया है। उन्हें तम्बू में बलि चढ़ाना होता था ताकि याजक उसे वेदी पर परमेश्वर के पास चढ़ा सकें। वे पशुओं के झुण्ड से एक भेड़ के बच्चे या एक निर्दोष पशु को चुनते हैं। याजक उनसे वह बली लेकर उसे वेदी पर चढ़ा देता था । पशु का लहू परमेश्वर की वेदी को शुद्ध करता था, जिसके द्वारा उनके पाप के द्वारा लाई गयी अशुद्धता दूर होती थी। एक बार बली चढ़ाने के बाद, वे स्वतंत्र हो जाते थे। उनके पाप का प्रायश्चित हो जाता था (जिसका अर्थ है भुगतान किया गया) और उनके हृदय शुद्ध हो जाते थे। परमेश्वर

अपने लोगों से प्रेम करता था, इसलिए उसने उन्हें शुद्ध होने का एक तरीका बताया ताकि वह उनके निकट रह सके