पाठ 14 : बाढ़

आदम और हव्वा के वंशज कुल विद्रोह में थे। वे उनके अद्भुत और पवित्र परमेश्वर की छवि को प्रतिबिंबित नहीं करते थे। इसके बजाय, वे दुष्टता में जीते थे और स्वयं को और अपने भीषण व्यवहार से अपने परिवारों को शर्मसार करते थे। परमेश्वर अवश्य उनका न्याय करेगा। वह उनको पृथ्वी से साफ़ कर देगा। यह उसका अधिकार था! उसने उन्हें बनाया था। वह उन्हें जीने के लिए सामर्थ और जीवन देता था। वह उन्हें लम्बी उम्र क्यूँ देगा जब कि वे अपना सारा समय भयंकर चीज़ें करने में बिताते हैं?

 

एक व्यक्ति था जिसने पाप और शर्म को स्वीकार नहीं किया था। भ्रष्ट और घृणित समाज के बीच में, नूह एक धर्मी मनुष्य था। वह शेत और हनोक के वंशज से था, और वह अपने प्रभु के साथ चलता था।नूह के नाम का अर्थ है "विश्राम।" यह कितना धन्य है किपृथ्वी पर सभी लोगों में यह सेवक परमेश्वर के हृदय को शांति देगा। परमेश्वर की आंखें जब उस पर थीं, तब वह सब पीड़ा और पृथ्वी पर की दुष्टता से मुक्त हो सकता था। एक धर्मी मनुष्य सब्बाथ कि तरह सामर्थ और शांति को ला सकता है। उसकी अच्छाई आदेश और शांति को लाता है। 

 

परमेश्वर ने उससे कहा, "इसलिए परमेश्वर ने नूह से कहा, “सारे लोगों ने पृथ्वी को क्रोध और हिंसा से भर दिया है। इसलिए मैं सभी जीवित प्राणियों को नष्ट करूँगा। मैं उनको पृथ्वी से हटाऊँगा। गोपेर की लकड़ी का उपयोग करो और अपने लिए एक जहाज बनाओ। जहाज में कमरे बनाओ और उसे राल से भीतर और बाहर पोत दो।‘” (उत्पत्ति 6:13-14)तब परमेश्वर ने उसे जहाज़ बनाने के विशेष आदेश दिए। जहाज़ एक बहुत बड़ी कश्ती होती है परन्तु यह जहाज़ कुछ अलग था। हवा को पकड़ने के लिए इसमें कोई बादबान नहीं था जो उसे नियंत्रित कर सके। इसमें कोई मल्ल्हाल नहीं था जिसके माध्यम से नूह और उसके पुत्र पानी में जहाज़ को चला सकें। इसमें कोई पतवार नहीं थी जिसके माध्यम से वे एक दिशा से दूसरी दिशा में जा सकें। यह केवल तैर सकती थी। नूह और उसका परिवार इसे नियंत्रित नहीं कर सकता था। उन्हें पूर्णरूप से परमेश्वर पर निर्भर करना होगा। परमेश्वर केवल यह चाहता था की वे ऊपर तैरते रहें और विश्वास से उस पर निर्भर करें। 

 

जहाज़ को 450 फुट लंबा, 75 फीट चौड़ा, और एक छत के साथ 45 फीट ऊंचा बनाना था। यह बहुत बड़ा था, और उसका एक ही उद्देश्य था। जहाज़ में नूह को अपनी पत्नी और बेटों और उनकी पत्नियों को लाने का आदेश दिया गया था। उनके साथ उन्हें हर पशु के दो दो प्रकार और भोजन लाने को कहा गया। तब परमेश्वर चालीस दिन और चालीस रातों के लिए बारिश भेजेगा। सारी पृथ्वी पानी से भर जाएगी।हर मानव और पशु, नाव पर के लोगों को छोड़, मर जाएंगे। इस प्रकार, जब पानी वापस चला जाएगा तब नूह और उसका परिवार और जानवर फिर से एक दुनिया शुरू कर सकेंगे। नूह और उसकी पत्नी और बच्चे एक नई संस्कृति का समाज शुरू करेंगे जहां परमेश्वर को आदर दिया जाएगा और उसकी आज्ञा का पालन होगा। 

 

केवल एक समस्या थी और वो थी कि बारिश अभी तक शुरू नहीं हुई थी। क्या यदि नूह एक विशाल जहाज़ बनाये और बारिश कभी आये नहीं? वह मानव समाज के लिए एक हसी का पात्र होगा! नूह को विश्वास के साथ जहाज़ का निर्माण करना होगा। उसने परमेश्वर के कहने पर विश्वास किया। परमेश्वर बारिश को भेजेगा और इसलिए नूह ने जहाज़ का निर्माण शुरू किया। 

 

नूह का विश्वास बहुत अद्भुत है। यह भी सोचना कितना अद्भुत है कि किस प्रकार उस कार्य को करने के लिए परमेश्वर नूह पर भरोसा कर रहे थे। परमेश्वर ने हव्वा से वादा किया था कि उसके वंशज में से एक, उसका अपना बीज आकर सर्प का सिर कुचलेगा। उस अभिशाप की भयंकर शक्ति को तोड़ने के लिए एक मानव के ऊपर वह ज़िम्मेदारी आएगी। और अब परमेश्वर एक परिवार को छोड़ पूरे मानवता के सभी बीज का सफाया करेगा ताकि वह दुनिया दोबारा शुरू कर सके। क्या यदि नूह भी बलवा करे? तब कैसे परमेश्वर हव्वा को दिए वादे को रख पाएगा?

 

ऐसे परमेश्वर पर धार्मिक निर्भरता के साथ जीना कितना अद्भुत है कि परमेश्वर ने नूह पर भरोसा कर के उस वादे को पूरा करने के लिए उसको चुना। शायद हम बाइबिल के एक प्रतिरूप को देख पा रहे हैं। जहां हर मानव विद्रोह करता है वहीं कुछ ही हैं जो विश्वास से जीवित रहते हैं। वे एक सम्मानजनक खजाना हैं जो परमेश्वर के लिए योग्य होते हैं। परमेश्वर पूरी मानव जाति से उनके पापों के कारण दुखी था परन्तु नूह का विश्वास ब्रह्मांड के निर्माता के लिए एक अमूल्य वरदान था। परमेश्वर और नूह मिलकर परमेश्वर की इच्छा को पूरी करने के लिए एक साथ एक वाचा के साझेदारी में थे। 

 

नूह ने जहाज़ का निर्माण करने के बाद एक सौ साल से अधिक परमेश्वर का इंतजार किया। उस पूरे समय पृथ्वी के लोग जानते थे कि एक धर्मी व्यक्ति के द्वारा आने वाले बाढ़ की चेतावनी दी गयी थी। उनके पास बहुत समय था पछतावा करने का। लेकिन उन्होंने नहीं किया। कल्पना कीजिये कि कैसे उन अभिमानी पापियों ने मज़ाक उड़ाया होगा। जब परमेश्वर के न्याय का समय आया, तब केवल नूह और उसके परिवार तैयार थे। 

 

"'तब यहोवा ने नूह से कहा, “मैंने देखा है कि इस समय के पापी लोगों में तुम्हीं एक अच्छे व्यक्ति हो। इसलिए तुम अपने परिवार को इकट्ठा करो और तुम सभी जहाज में चले जाओ। हर एक शुद्ध जानवर के सात जोड़े, (सात नर तथा सात मादा) साथ में ले लो और पृथ्वी के दूसरे अशुद्ध जानवरों के एक—एक जोड़े (एक नर और एक मादा) लाओ। इन सभी जानवरों को अपने साथ जहाज़ में ले जाओ। हवा में उड़ने वाले सभी पक्षियों के सात जोड़े (सात नर और सात मादा) लाओ। इससे ये सभी जानवर पृथ्वी पर जीवित रहेंगे, जब दूसरे जानवर नष्ट हो जायेंगे। अब से सातवें दिन मैं पृथ्वी पर बहुत भारी वर्षा भेजूँगा। यह वर्षा चालीस दिन और चालीस रात होती रहेगी। पृथ्वी के सभी जीवित प्राणी नष्ट हो जायेंगे। मेरी बनाई सभी चीज़े खत्म हो जायेंगें।”                                  उत्पत्ति 7: 1-4 

 

जैसा परमेश्वर ने कहा था ठीक वैसा ही हुआ। नूह और उसका परिवार जानवरों समेत जहाज़ पर चढ़ गया। हर प्रकार का जानवर वहां था। जानवरों कि हर प्रकार कि आवाज़ कितनी अविश्वसनीय होगी।सात दिनों के बाद, बारिश होने लगी और बारिश चालीस दिन और चालीस रात लगातार होती रही। 

 

जहाज़ पर दृश्य जीवन से भरा हुआ था, लेकिन ज़मीन पर दृश्य बहुत अलग था। वे लोग जो परमेश्वर का विरोध करते थे अब रोना पीटना हो रहा था और वे पृथ्वी से मिटाये जा रहे थे। अब उन्हें अपने पापों के द्वारा परमेश्वर के निर्माण को अपवित्र करने कि अनुमति नहीं दी जाएगी। 

 

उनके घर और झोपड़ियां, सभी अंतहीन पानी कि मूसलधार बारिश के तहत डूब गए थे। उनके माता पिता के पाप के कारण उनके बच्चों की बर्बादी की कल्पना कीजिये। ये माता पिता अपने बच्चों को विद्रोह के विरुद्ध प्रशिक्षित कर सकते थे। वे उन्हें केवल दुष्ट या उससे बुरे को सीखा सकते थे। और इसलिए परमेश्वर ने पृथ्वी और उन लोगों से मानवता के भविष्य कि रक्षा की। वह एक धर्मी न्यायाधीश है। 

बाइबिल बताती है कि एक बार जब नूह का परिवार और सभी जानवर जहाज़ पर आ गए, "... परमेश्वर ने उन्हें बंद कर दिया." एक तरह से परमेश्वर ने नूह के पीछा द्वार को बंद कर दिया। उस पल में, एक तेज रेखा परमेश्वर का पालन करने वालों और विद्रोह करने वालों के बीच खींची गयी। नूह का परिवार परमेश्वर का एक हिस्सा था, और परमेश्वर की सुरक्षा उन पर थी। 

  

परमेश्वर की कहानी पर अध्ययन।  

परमेश्वर सब मानवता का निर्माता है, लेकिन इस कहानी से यह स्पष्ट होता है की वह उन सब की रक्षा करता है जो उसके वफ़ादार हैं। यह कहानी परमेश्वर कि धार्मिकता और पवित्रता के प्रकोप के पक्ष के बारे में बताती है। आपको परमेश्वर के बारे में क्या लगता है? 

आप किन शब्दों से परमेश्वर का वर्णन करेंगे जब वह अपना न्याय दिखाता है। भयानक? भयभीत? उपभोक्ता? ताकतवर और शक्तिशाली? आपको कैसा लगता है जब यह एहसास होता है कि ये सब बातें आपके परमेश्वर के विषय में सच्च हैं? 

 

कभी कभी यह कल्पना करना मुश्किल है कि परमेश्वर इतने सारे लोगों का न्याय करेगा। हमें अपने आप से पूछना चाहिए, "परमेश्वर और क्या कर सकता था?" क्या उसे उस भयंकर और दुष्ट व्यवहार को स्वीकार कर लेना चाहिए था? क्या उसे मानवता को एक दूसरे के विरुद्ध पाप करने देना चाहिए जो बदतर होता जा रहा था? 

 

मेरी दुनिया, मेरे परिवार, और स्वयं पर लागू करना।  

उनके सामने नूह जो एक धर्मी आज्ञाकारिता और चेतावनी का उदाहरण था, फिर भी उन्होंने अपने सृष्टिकर्ता को अस्वीकार करने का फैसला किया। जब हम इस कहानी को पढ़ते हैं, "आप किस टीम में होना चाहेंगे? समाज के साथ उनके पाप के साथ चलना आसान है, लेकिन यह यहां अंत नहीं होगा। आप मेरे साथ चलेंगे?" क्या आप कुछ ऐसी बातों को सोच सकते हैं की किस प्रकार आपने इस संसार की दुष्ट बातों में साथ दिया? कभी कभी हम अपने कामों के द्वारा उनका साथ देते हैं। कभी कभी अपने विचारों के द्वारा भी। हम पश्चाताप और विश्वास के साथ निश्चिन्त हो सकते हैं की इस लड़ाई में हम परमेश्वर की ओर हैं। क्या कोई ऐसा व्यवहार या रवैय्या है जो आप अपने परमेश्वर के आगे रखना चाहते हैं? पिछले कुछ दिनों के अपने व्यव्हार के विषय में शांति से बैठ कर सोचिये। आपके हृदय को शुद्ध करने के लिए क्या आप चाहेंगे की यीशु आपकी मदद करे?

 

अपने परमेश्वर की प्रति हमारे प्रत्युत्तर।  

यीशु ने कहा,"धन्य हैं वे लोग जो शोक करते हैं।" उन भयंकर पाप के लिए शोक करें जिससे यह संसार प्रभावित है। दूसरा हम अपने और दूसरों के लिए शोक मनाएं जो भयंकर पाप के कारण प्रभावित हुए हैं। आप इस भजन संहिता के माध्यम से प्रार्थना कर सकते हैं परमेश्वर को यह दिखाने के लिए किआप कितना अधिक शोक कर रहे हैं। हम इन शब्दों के द्वारा अपने पापों को सही रीती से समझ पाएंगे। इसे ज़ोर से पढ़ने के लिए आप किसी से कह सकते हैं। यदि आप चाहें तो इन शब्दों को दोहरा सकते हैं और इस तरह पढ़ें जैसे कि वे आपके अपने शब्द हैं। 

 

भजन संहिता 51: 1-12 

"हे परमेश्वर, अपनी विशाल प्रेमपूर्ण

अपनी करूण से मुझ पर दया कर।
मेरे सभी पापों को तू मिटा दे।
हे परमेश्वर, मेरे अपराध मुझसे दूर कर।
मेरे पाप धो डाल, और फिर से तू मुझको स्वच्छ बना दे।
मैं जानता हूँ, जो पाप मैंने किया है।
मैं अपने पापों को सदा अपने सामने देखता हूँ।
है परमेश्वर, मैंने वही काम किये जिनको तूने बुरा कहा।
तू वही है, जिसके विरूद्ध मैंने पाप किये।
मैं स्वीकार करता हूँ इन बातों को,
ताकि लोग जान जाये कि मैं पापी हूँ और तू न्यायपूर्ण है,
तथा तेरे निर्णय निष्पक्ष होते हैं।
मैं पाप से जन्मा,मेरी माता ने मुझको पाप से गर्भ में धारण किया।हे परमेश्वर, तू चाहता है, हम विश्वासी बनें। और मैं निर्भय हो जाऊँ।
इसलिए तू मुझको सच्चे विवेक से रहस्यों की शिक्षा दे।
तू मुझे विधि विधान के साथ, जूफा के पौधे का प्रयोग कर के पवित्र कर।तब तक मुझे तू धो, जब तक मैं हिम से अधिक उज्जवल न हो जाऊँ।
मुझे प्रसन्न बना दे। बता दे मुझे कि कैसे प्रसन्न बनूँ? मेरी वे हडिडयाँ जो तूने तोड़ी, फिर आनन्द से भर जायें।मेरे पापों को मत देख। उन सबको धो डाल।परमेश्वर, तू मेरा मन पवित्र कर दे।
मेरी आत्मा को फिर सुदृढ कर दे।
अपनी पवित्र आत्मा को मुझसे मत दूर हटा,
और मुझसे मत छीन।
वह उल्लास जो तुझसे आता है, मुझमें भर जायें।
मेरा चित अडिग और तत्पर कर सुरक्षित होने को

और तेरा आदेश मानने को।