सृष्टिकर्ता परमेश्वर और मनुष्य का पाप में गिरना

पुराना नियम इस वाक्य से शुरू होता है: "शुरुवात में, परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की रचना की।"  फिर वह यह भव्य और शानदार कहानी बतलाती है जिसमे परमेश्वर सिर्फ अपने मुंह के बोले शब्द से सारी दुनिया को बनाता है। "रोशिनी हो!", परमेश्वर ने कहा; और फिर, गुप अँधेरे से तेज़ और चमकदार रोशिनी फूट कर निकली!  क्या आप कल्पना कर सकते हैं? यह देखकर, आश्चर्यचकित स्वर्गदूत ख़ुशी मनाने लगे!

छे दिन के दौरान, परमेश्वर ने तारे, चन्द्रमा और सूरज को बनाया। उसने पृथ्वी को बनाया और समुद्रों को पानी से लबालब कर दिया। उसने न केवल हर प्रकार के पेड़ पौधे बनाए पर विभिन्न प्रकार की मछलियां, कीड़े और जीव जंतु भी बनाए। क्या आप कल्पना कर सकते है की स्वर्गदूतों को परमेश्वर की जीती जागती रचना को देखकर कैसा लगा होगा? सौरमंडल के बड़े- बड़े जलते तारो ने तो उनको आश्चर्य से भर दिया होगा! क्या पता उन्होंने इन आग के गोलों की सैर की हो और इन ग्रहों को घूमते देखा हो? क्या पता वे एक-एक करके सारे सौर्यमंडल पर घूमने गए हों? सबसे पहला जिराफ, ऊँट, और बन्दर को देखकर उनको कितनी हंसी आई होगी! महान बर्फीली चट्टाने, तूफानी लेहेरों और शेर की गर्जन ने उनको अचंबित करने वाले भय से भर दिया होगा! सारी प्रकृति परमेश्वर की महिमा को दिखा रही थी।

यह सब परमेश्वर की इच्छा से आये थे, और यह सब सबसे अच्छी और उत्तम थी क्योंकि इनको बनाने वाला भी सबसे श्रेष्ठ और उत्तम है। जब हम कुछ सुंदर देखते है, तो हमारे हिरदय आनंद से उठते है। वो इसलिए होता है क्योंकि हम एक ऐसी चीज़ निहार रहे है जो परमेश्वर की सुन्दरता का कुछ अंश हमे वापस दिखाती है। पहाड़ों की भव्यता, परमेश्वर की महान पवित्रता को दिखाती है, जैसे की यह फैला हुआ आकाश उसकी महान विश्वासयोग्यता को दिखाती है! जब परमेश्वर ने भूमंडल बनाया, तो उसने एक ऐसा राज्य बनाया जिसमे उसकी महिमा और अच्छाई के स्मारक प्रकृति के रूप में हो!

तब, परमेश्वर के लिए वह समय आया जब वह अपनी बनाई ह्ई वस्तुओ में से सबसे उत्तम चीज़ बनाये। वह एक प्राणी को अपने स्वरुप में बनाना चाहता था। यह प्राणी एक आईने की तरह होगा जो परमेश्वर की शक्ति, शासन और उसकी सम्पूर्ण देख बाल अपने बाकी बनाई हुए सृष्टि पर दर्शाएंगे। इन विशेष प्राणी को बनाने के लिए उसने सिर्फ शब्द नहीं बोले, जैसे उसने सूरज, तारे, और पेड़ बनाने के लिए किया। यह प्राणी बनाने के लिए, पमेश्वर खुद धरती पर आये। तब उसने ज़मीन से थोड़ी मिट्टी ली और ऐसा आकर बनाया जैसे हम मिट्टी से चीज़े बनाते है। परमेश्वर ने आदमी का आकर बनाया और उसमे जीवन का श्वास फूक दिया ताकि उसमे जान आ जाये! परमेश्वर सृष्टि का महान राजा था, और बाकी मानव जाती को उसके विशेष, सुम्मानित सेवको के जैसे उसकी इस अदभुत दुनिया को सीचना और देख रेख करना था।

परमेश्वर ने अपने शाही सेवक को एक शानदार बगीचे में रखा जिसको उसने उनके लिए बनाया था। यह एक पवित्र मंदिर की तरह था जहां आदमी और औरत को अपने प्रभु की सेवा में, पूर्ण निर्भरता में रहना था। वह परमेश्वर पर स्थिर और पूर्ण आज्ञाकारिता में रह सकता था। पाप की तरफ उसका कोई आकर्षण नहीं था क्योंकि यह आदमी केवल परमेश्वर की भलाई जानता था। वह प्रलोभन या बुराई की तरफ आकर्षण को नहीं जानता था। और क्योंकि वहाँ कोई बुराई या पाप नहीं था, वहां दुख या मौत नहीं थी। यह एक आदर्श दुनिया थी जहां आदमी पूरी तरह से पवित्र, परमप्रधान परमेश्वर के करीब रह सकता था।उस महान, शानदार बगीचे से चार नदियों बहती थी। उस बगीचे में हरे भरे पेड़ थे जिसमे से ऐसे रसीला और स्वादिष्ट फल टंगे थे कि कोई उसकी कल्पना भी नहीं कर सकता है। बगीचे के बीच में दो विशेष पेड़ थे। एक जीवन का पेड़ था। दूसरा अच्छे और बुरे के ज्ञान के वृक्ष था। आदमी को पूरे बगीचे में किसी भी पेड़ से फल खाने की स्वतंत्रता थी, केवल एक छोड़ कर। परमेश्वर ने उसे अच्छे और बुरे के ज्ञान के पेड़ से खाने को मना किया था। यह परमेश्वर की  वफादार सुरक्षा थी। इस वृक्ष के फल उसके लिए बहुत खतरनाक था। अगर वह इसमें से खाता,  तो वह पाप और बुराई को समझता, और यह ज्ञान उसकी आत्मा के ऊपर हावी होती। अगर वह इसे खता,  तो वह मर जाता। आदमी दर्द, शर्म या पीड़ा नाम की चीज़ नहीं जनता था,  इसलिए उसे कोई ज्ञान नहीं था कि परमेश्वर उसकी किस बात से रक्षा कर रहा है। और जब तक मनुष्य परमेश्वर के आदेश का पालन करता, उसे दर्द या मौत का अर्थ जानने की ज़रुरत भी नहीं थी।

परमेश्वर ने प्रथम आदमी को अपने पूरे सांसारिक राज्य का अधिकार दिया था, तो वह सभी जानवरों को बाहर लाया ताकि मनुष्य उन्हें उनके नाम दे सके। जैसे जैसे उसने हर एक जानवर का नाम रखा, वैसे वैसे कुछ बात बहुत स्पष्ट हो गई। हालांकि इनमे से कई जानवर सुंदर, होशियार और काफी अद्भुत थे, उनमें से कोई भी आदमी के लिए एक संगी बनने लायक नहीं था। वह इस  पृथ्वी पर कितना अकेला होगा! परमेश्वर ने देखा कि उसे एक साथी और सहायक की जरूरत है। तो प्रभु ने  उसे एक गहरी नींद में डाल दिया और उसकी छाती से एक पसली ली। उस पसली से परमेश्वर ने पहली महिला बनाई। उसकी पहली झलक ने ही आदमी के दिल को एक गहरी और शक्तिशाली रोमांच से भर दिया। उसे पूर्ण तरह से आदमी के लिए आदर्श प्रेमी सहायक और साथी के लिए बनाया गया था। उनका एक दूसरे के लिए संयुक्त प्यार और सम्मान, दुनिया के लिए परमेश्वर के प्रेमी चरित्र का शुद्ध प्रतिबिंब होना चाहिए था। उनका नाम आदम और हव्वा था, और वे हर जन्मे मानव के माता और पिता हैं। इसमें आप और मै भी शामिल है!