पाठ 3: उज्जिय्याह राजा

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योआश राजा ने यहूदा पर चालीस वर्ष तक शासन किया। वह एक अच्छा राजा था । जब उसने परमेश्वर के मंदिर को बहाल किया, उसने परमेश्वर के लोगों से अपने प्रभु कि एक सिद्ध उपासना करवाई । फिर भी योआश ने ऊँचे स्थानों का नाश नहीं किया जहां यहूदा के बहुत लोग मूर्तिपूजा करने के लिए जाते थे । उन्हें आशा थी कि अन्य देशों के देवता उनकी प्रार्थनाओं का उत्तर देंगे । परमेश्वर का कैसा अपमान ! उन्होंने उसकी इच्छा की और ना ही उसके बड़े प्रेम की परवाह की । वे अपनी मर्ज़ी करना चाहते थे, और वे किसी भी मूर्ति के सामने दंडवत करते थे जो उन्हें उनके मांगने के अनुसार दे I  

 

परमेश्वर को इसके द्वारा क्रोध आया । उसने उन्हें उन देशों के ऊपर अपना विशेष याजक बनाया जो उनके चरों ओर थे । इस्राएल के लोगों को दुनिया को सबसे पवित्र परमेश्वर के विषय में सिखाना था । बल्कि, उन्होंने प्रभु को अस्वीकार किया और उन मूर्तियों के आगे दंडवत किया जिन्हें लोगों ने अपने हाथों से बनाया था । 

 

योआश की मृत्यु के बाद, उसका पुत्र राजा बना । कई राजा आये और चले गए । कुछ अच्छे थे और कुछ बुरे थे, लेकिन किसी ने भी ऊँचे स्थानों से मूर्तिपूजा को नहीं हटाया । 

 

योआश के परपोतों में से एक राजा था जिसका नाम उज्जिय्याह था (2 राजा 15:1-7; 2 इतिहास 26) I उसने राजा बनकर बयालीस वर्ष राज्य किया और दक्षिण राज्य को बलवंत बनाने के लिए कई शानदार काम किये । उसने यरूशलेम के शहर के चारों ओर शहरपनाह बनवाये । उसके पास एक शक्तिशाली और सक्रीय सेना थी जो उसके लोगों की रक्षा करते थे और शत्रु का आक्रमण करते थे । उज्जिय्याह की सेना के लोगों को उनके शरीर की रक्षा के लिए ढालें और विशेष कवच दिए गए थे । उन्हें लड़ने के लिए शक्तिशाली हथियार दिए गए थे I इस्राएल की मजबूत सेना का मतलब था कि अन्य राष्ट्र उन पर हमला नहीं करते थे क्योंकि वे डरते थे । इस्राएल के लोगों ने कई वर्षों तक युद्ध नहीं किया था I

 

युद्ध से स्वतंत्रता मिलना बहुत महत्वपूर्ण था । उन दिनों युद्ध जब होता था, सेनाएं पड़ोस और गांवों के बीच से निकल कर जाती थीं । दुश्मन अक्सर सभी घरों को नष्ट कर देते थे, पुरुषों को मारते, और महिलाओं और बच्चों का अपहरण करते थे । यदि दुश्मन जीते, तो वे गुलाम बनाने के लिए पूरे परिवार और गांव को अपने देश वापस ले जाते थे । यहूदा के लोग जानते थे कि यह कितना भयानक था और वे उज्जिय्याह राजा के प्रति बहुत खुश और आभारी थे कि वे शांति से अपना जीवन जी रहे थे।

 

उज्जिय्याह राजा ने इस्राएल के किसानों की भी मदद की, ताकि खाने के लिए पर्याप्त हो । कल्पना कीजिए भोजन के बिना कितना भयानक होगा । जब एक अकाल आया, लोग अक्सर कई महीनों और साल तक, प्रत्येक दिन खाने के बगैर रहते थे I हर एक जन को कष्ट सहना पड़ा, और अक्सर कई भुखमरी से मर जाते थे । उन दिनों में अकाल बहुत होता था, और अधिकतर लोग अपने जीवन के कई वर्ष तक भूख रहते थे । लेकिन यहूदा के खेतों का निर्माण करके, उज्जिय्याह राजा ने अपने लोगों को उस भयानक दर्द से भी सुरक्षित किया था I

 

कई मायनों में, उज्ज़ियाह एक उत्कृष्ट अगुवा था । परमेश्वर ने राजा को आशीर्वाद दिया था I लेकिन परमेश्वर को धन्यवाद और महिमा देने के बजाय, उज्जियाह बहुत गर्व और अभिमानी बन गया I उसने अपने दिल में इन सब का श्रेय ले लिया । उसका यह मानना था कि ये सभी अच्छी चीजें इसलिए थीं क्योंकि वह एक महान व्यक्ति था, इसलिए नहीं कि परमेश्वर ने उसे महान उपहार दिए थे I वह आभारी होना भूल गया I उसे इतना गर्व था कि उसने तय किया कि वह उस विशेष, पवित्र नियम को तोड़ देगा जिसे परमेश्वर ने मंदिर में आराधना के लिए ठहराया था ।

 

बहुत समय पहले, जब परमेश्वर ने मूसा को नियम दिया था, तो उसने इस्राएल के राष्ट्र को आदेश और भलाई लाने के लिए नियम का संचय दिया था । उनमे से एक नियम था लोगों के एक समूह को नियुक्त करना, जो यहोवा के पवित्र याजक थे, जिन्हें यरूशलेम में पवित्र मंदिर में सेवा करने का विशेष, पवित्र कार्य प्रदान किया गया था । केवल वे ही लोग थे जिन्हें अभयारण्य के भीतर के आंगन में प्रवेश करने की अनुमति दी गयी थी । सब इसरायली अपने बलिदानों को याजकों के पास लाते थे । याजक उन बलिदानों को मंदिर में लेजाकर यहोवा को चढ़ाते थे । यह वही ठहराई गयी भूमिका थी जिसे परमेश्वर ने उन्हें दी थी । लेकिन अब, उज्जिय्याह राजा ने सोचा कि उसके पास एक बेहतर योजना थी I वह परमेश्वर बलिदान को किसी और के द्वारा परमेश्वर को देने के लिए नहीं देना चाहता था I वह राजा था! उसने फैसला किया कि वह मंदिर में जाने के योग्य था, उसे एक याजक की मदद की ज़रूरत नहीं थी ।

 

जैसे ही राजा बलिदान चढाने के लिए मंदिर के फाटकों के माध्यम से गया, तो ऐसा करने से एक बड़ा हंगामा हुआ । वह देश में सबसे शक्तिशाली व्यक्ति था, वह जहां भी जाता था  वह एक बहुत बड़ा मामला होता था । वह अपने चढ़ावे को मंदिर के कक्ष में ले आया जहां केवल याजकों को जाने की अनुमति थी । उस दिन मंदिर में यहूदी चौंक गए होंगे । वह क्या कर रहा था? यहां तक कि पूर्व में महान राजाओं ने भी परमेश्वर के कानून के विरुद्ध ऐसा अपमानजनक कृत्य करने की हिम्मत नहीं की थी ! लेकिन उसे कौन रोक सकता था ? राजा के पास हर उस व्यक्ति को मार डालने का अधिकार था जो उसका विरोध करता था । क्या कोई उसके विरुद्ध खड़ा होगा ?

 

अजर्याह नाम का एक बहुत बहादुर याजक राजा के विरुद्ध साहस के साथ खड़ा हुआ I उज्जिय्याह इस्राएल का राजा हो सकता है, परन्तु परमेश्वर एक राजा के रूप में राज्य करता है । परमेश्वर ने उज्ज़ियाह को बहुत ज़रूरी जिम्मेदारियां दीं थीं, परन्तु परमेश्वर ने उसे एक याजक नहीं बनाया था I उज्जिय्याह यहोवा का अनादर उसकी उपासना के साथ कर रहा था ! वह वास्तव में अपनी शक्ति को पूज रहा था और उसका प्रदर्शन कर रहा था !

 

अजर्याह याजक अपने साथ अस्सी अन्य बहादुर याजकों को मंदिर में ले आया । वे सभी राजा का सामना करने के लिए उज्जिय्याह के सामने खड़े हुए । "उज्जिय्याह, तुमने यहोवा के लिये धूप जलाए, यह तुम्हारे लिए उचित नहीं है" अजर्याह ने कहा I "यह याजकों के लिए है, हारून के वंशज, जिन्हें धूप जलाने के लिए पवित्र किया गया है I मंदिर को छोड़ दो, क्योंकि तू अविश्वासी है; और तू यहोवा परमेश्वर द्वारा सम्मानित नहीं होंगे।" वाह, सबसे शक्तिशाली व्यक्ति को ऐसी बात कहना एक बड़े साहस की बात है !

 

उज्जिय्याह ने मंदिर में उस धूप को अपने हाथ से हवा में उठाया, जिसे चढ़ाया जाना था I उसका चेहरा लाल हो गया I उसे रोकने की उन्हें हिम्मत कैसे हुई ? वह परमेश्वर के याजकों के प्रति अत्यंत क्रोधित हुआ I जब वह क्रोधित होकर चिल्ला रहा था, तो याजक ने कुछ बहुत अजीब होते देखा I जब वह चिल्ला रहा था और क्रोधित हो रहा था, उसके माथे पर कुछ सकल और सफेद फैल रहा था । यह एक भयानक बीमारी थी । यह कुष्ठ रोग था ! मुख्य याजक और अन्य सभी याजकों ने उसके चेहरे पर उसे फैलते हुए देखा I उनके चेहरे भी भय से भर गए I उन्होंने उसे चेतावनी दी थी I उज्जियाह ने उनके चेहरे को देखा और उसे लगा कुछ बहुत गलत हुआ है । याजकों ने उसे परमेश्वर के पवित्र मंदिर से बाहर निकाला ।

 

राजा उज्जियाह अपने जीवनभर कुष्ठ रोग से ग्रस्त था I यह एक घातक बीमारी थी जो उनका मानना था कि बहुत संक्रामक होती है । जो कोई भी उसके पास आता है, वह भी कुष्ठ हो जाएगा । उज्ज़ियाह को हर किसी से अलग रहना पड़ा I उसे महल से बाहर जाकर एक अलग घर में रहना पड़ा ताकि वह दूसरों को कुष्ठ रोग न दे सके । वह फिर कभी मंदिर में नहीं आ सकता था । क्योंकि उसे कुष्ठ रोग था, वह अब राजा के रूप में शासन नहीं कर सकता था । उसके बेटे ने यहूदा के राज्यपाल का पद संभाला । उज्जिय्याह के अहंकार के कारण उसने सब कुछ खो दिया था I

 

राजा योआश और उसके महान नातू राजा उज्जिय्याह के बीच में कितना बड़ा अंतर है I योआश ने परमेश्वर की महिमा का सम्मान करने के लिए मंदिर को बहाल किया था I उज्जिय्याह ने मंदिर में परमेश्वर की आराधना करने के तरीके को दूर कर दिया था I उज्ज़ियाह पर परमेश्वर के न्याय के माध्यम से यहूदा के राष्ट्र के पास एक महान सबक सीखने का मौका था I क्या वे ऊँची जगहों पर अपनी झूठी आराधना से मुड़ेंगे, या वे मूर्तियों और दुष्टताओं का पीछा करते रहेंगे ?