पाठ 1: परमेश्वर की महान कहानी

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आदि में परमेश्वर ने आसमान और पृथ्वी की सृष्टि की । उसने शून्य से सब कुछ बनाया...चाँद और समुन्दर, हवा और पक्षी और सभी पशु और धरती के ग्रह I वह  इतना शक्तिशाली है कि उसके बोलने से सब कुछ अस्तित्व में आ जाता है । परमेश्वर की सृष्टि के सबसे विशेष दो दिलचस्प प्राणी थे । उनका नाम आदम और हव्वा था, और वे सबसे पहले मनुष्य थे । वे पृथ्वी में प्रत्येक मनजाति के माता और पिता थे ! परमेश्वर ने उन्हें एक सुन्दर, उत्तम उद्यान में रखा था । वह परमेश्वर का विशेष शरणस्थान था जहां वह दिन के ठन्डे समय में अपने बच्चों के साथ चलता था । वह उनसे कितना प्रेम करता था ! परंतु परमेश्वर के उदार प्रेम को उसे लौटाने के बजाय, उन्होंने उसके विरुद्ध विरोध किया । उन्होंने उस एक नियम का विद्रोह किया जो उसने उन्हें दिया था । वह विद्रोह, वह लड़ाई उस परमेश्वर के विरुद्ध जिसने उन्हें बनाया था, उनके ऊपर एक भयानक अभिशाप को ले आया । उन्होंने अपने आप को उसके सिद्ध उदारता से अलग कर लिया था और दुष्टता को निमंत्रण दे दिया था । उसके द्वारा उनकी आत्मा बिगड़ गयी और विकृत हो गयी थी । पहले, वे परमेश्वर के सेवक थे और शुद्ध, सिद्ध और उनके पास पवित्र रहने की शक्ति थी । अब वे पाप और परीक्षा के ज्ञान को अपने हृदयों में ले आये थे । वह एक ज़हर के समान था । उसके द्वारा उन पर और उनके आने वाले बच्चों पर मृत्यु और क्षय का अभिशाप आ गया था । यह ब्रह्मांड में प्रत्येक पौधे और पशु पर एक ही अभिशाप को ले आया । 

 

लेकिन परमेश्वर पवित्र और भला है, और उसके पास आशीष देने का एक महान और महाकाव्य योजना थी । वह जानता था कि आदम और हव्वा पाप में पड़ेंगे । वह जानता था कि वे दुनिया में हज़ारों वर्षों के लिए लज्जा और पीड़ा को लेकर आएंगे । और वह स्पष्ट रूप से जानता था कि वह उन्हें कैसे बचाएगा! प्रभु ने स्वयं के लिए एक विशेष राष्ट्र को खड़ा किया जो बाकि के संसार के लिए याजकों का देश होगा । वे अन्य सभी देशों के लिए एक ज्योति के समान होंगे । वह देश, इस्राएल का देश, परमेश्वर की ओर से विशेष शिक्षा पाएगा । वह उन्हें अपनी पवित्रता के विषय में बताएगा । यदि वे उसकी आज्ञा मानते हैं, वे एक शापित दुनिया में पवित्रता और निर्दोष होने का एक सुंदर उदहारण बनेंगे । दूसरे देश उन्हें देखेंगे और जानेंगे कि जिस परमेश्वर की उपासना वे करते हैं वह एक सच्चा और जीवित परमेश्वर है !

 

ये लोगों ने, इस्राएल का देश, बहुत अच्छी शुरुआत नहीं की । वास्तव में, उन्होंने ग़ुलाम बनकर शुरुआत की । याकूब, जो देश का महान पिता था, और उसके बारह पुत्र अपने देश को छोड़ कर मिस्र देश को चले गए । उनके अपने घर में भयानक अकाल पड़ा, और यदि वे एक साथ रहते हैं, तो उन्हें भूखे रहना होगा ! परंतु मिस्र में, बहुतायत से भोजन था । इसलिए वे वहां चले गए और भोजन खाया और चार सौ वर्ष तक मिस्र देश में रहे । और जिस तरह परमेश्वर ने वादा किया था, याकूब का बारह पुत्रों का परिवार 20 लाख लोगों का एक महान समूह बन गया । 

 

मिस्र के लोग और फिरौन इसके विषय में खुश नहीं थे । उन्हें चिंता थी कि इस्राएल के लोग उनके देश को कब्ज़ा कर लेंगे । इसलिए उन्होंने उन्हें ग़ुलाम बनाया । उनके छोटे बच्चों को लेकर उन्हें मार दिया । उनसे इतना अधिक से अधिक परिश्रम करवाया कि उन्होंने परमेश्वर को अपने भयानक उत्पीड़कों से मुक्ति पाने के लिए पुकारा । 

 

परमेश्वर ने अपने बच्चों की पुकार को सुना । उसने एक महान अगुवे को भेजा,  जिसका नाम मूसा था, कि वह उन्हें मिस्र देश से निकाल लाये और वापस वादे के देश में ले आये । परमेश्वर ने मूसा के माध्यम से चमत्कार किये ताकि फिरौन उसके लोगों को जाने दे । इस्राएली मिस्र से निकल कर एक पूर्ण राष्ट्र के रूप में मरुभूमि में गए जो मिस्र और वादे के देश के बीच था । जब वे मरुभूमि में ही थे, परमेश्वर ने उन्हें एक विशेष नियम दिया जिसके द्वारा वे सिद्ध जीवन जी सकें । फिर भी शुरुआत से, वे पाप करने लगे । उन्होंने परमेश्वर के भली और सिद्ध योजना के प्रति गहरे अविश्वास को दिखाया और विरोद्ध किया । इसलिए परमेश्वर ने इस्राएल की पहली पीढ़ी से कहा कि वे कभी भी वादे के देश में प्रवेश नहीं करेंगे । अब बच्चों को वफ़ादारी के साथ उस देश को हासिल करना होगा और अपने लोगों को वहां स्थापित करना होगा । चालीस वर्ष तक परमेश्वर ने इस्राएलियों की परीक्षा मरुभूमि में ली, ताकि वे एक पवित्र राष्ट्र बन सकें । पूरे समय, परमेश्वर ने उन्हें प्रति दिन एक विशेष रोटी खिलाई जिसे मन्ना कहते हैं । उसने सुनिश्चित किया कि उनके कपड़े न फटें, और उसने दिन को बादल के खम्बे से और रात को आग के खम्बे से उनकी अगुवाई की । 

 

समय आ गया था कि उन्हें वादे के देश में ले जाया जाये । यहोशू, जो मूसा का दास था, ने इस्राएल की सेना को कनान के उनदेशों पर जीत हासिल करने के लिए अगुवाई की जो उस देश में पहले से थे । सात अति दुष्ट राष्ट्र थे जो झूठे देवतों की उपासना करते थे और भयानक पापी जीवन जीते थे । परमेश्वर ने कनानियों को उनके पापों का न्याय करने के लिए इस्राएलियों का उपयोग किया, और फिर उसने इस्राएलियों को उनका देश दिया । इस्राएलियों ने देश को इस्राएल के बारह गोत्र में विभाजित किया । वे वहां रहने लगे, घर बनाये और खेतीबाड़ी करने लगे । वे एक राष्ट्र के रूप में साल में तीन बार परमेश्वर के पवित्र मंदिर में उपासना करने लगे । और परमेश्वर ने अनुयायी और नबी और अगुवे भेजे ताकि वे परमेश्वर को आदर दे सकें।